गणित का एक कठिन प्रश्न ये भी
जिस पनघट के नीर से, सदा बुझायी प्यास
शीर्षक -"मैं क्या लिखूंँ "
आधार छंद - बिहारी छंद
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
छंद: हरिगीतिका : इस आवरण को फोड़कर।
फिसलती रही रेत सी यह जवानी
प्रेम पगडंडी कंटीली फिर भी जीवन कलरव है।
विष का कलश लिये धन्वन्तरि
अपना कोई नहीं है इस संसार में....
क्यों हमें बुनियाद होने की ग़लत-फ़हमी रही ये
मारी - मारी फिर रही ,अब तक थी बेकार (कुंडलिया)
दिल चाहता है अब वो लम्हें बुलाऐ जाऐं,
प्यार दर्द तकलीफ सब बाकी है
हवाओं ने बड़ी तैय्यारी की है
दूर जा चुका है वो फिर ख्वाबों में आता है
हम लहू आशिकी की नज़र कर देंगे