जब तक हम जीवित रहते हैं तो हम सबसे डरते हैं
सुकुमारी जो है जनकदुलारी है
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
मनुष्य अंत काल में जिस जिस भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर त्य
- तेरे बाद में कुछ भी नही हु -
शिक्षक दिवस
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
सब कुछ खोजने के करीब पहुंच गया इंसान बस
बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेई
संवेदन-शून्य हुआ हर इन्सां...
वीरमदे
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
टूटे हुए पथिक को नई आश दे रहीं हो
नव रूप
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
जीवन में जो समझ खाली पेट और खाली जेब सिखाती है वह कोई और नही
एक सफल प्रेम का दृश्य मैं बुन रहा।
अभाव और कमियाँ ही हमें जिन्दा रखती हैं।