जननी
हे जननी जन्मभूमि तू स्वर्ग से भी महान है,
पूत या कपूत हों पर,सब तेरे ही संतान हैं।
चाह हृदय में लिए हुए,नित तेरा ही गुण गाऊं,
जीवन के अंतिम क्षण में,अंक तेरा ही पाऊं।।
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रचना- पूर्णतः मौलिक एवं स्वरचित
निकेश कुमार ठाकुर
गृहजिला- सुपौल
संप्रति- कटिहार (बिहार)
सं०-9534148597