जनता
जनता से जो मांगते, वोट नोट का प्यार |
प्यारी जनता कर रही, जी भर कर दुत्कार |
जी भर कर दुत्कार, वोट की खातिर रोते |
जाति जाति में बाँट,नफरती भाषण होते|
कहें प्रेम कविराय, घुना गेहूं है छनता|
वादों का व्यापार,झूठ सच छाने जनता |
वादे नेता कर रहे, मची चुनावी होड़ |
राजनीति की होड़ में, जन प्रतिनिधि हैं तोड़ |
जनप्रतिनिधि हैं तोड़,हो रही जोरम जोरी |
जनता ठगती जाए,हो रहे मुद्दे चोरी |
कहें प्रेम कविराय, सभी शतरंजी प्यादे |
चले दांव पर दांव,चुन रही जनता वादे |
डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव प्रेम
लखनऊ