जनता मांगती है मगर दिलाने का नई
आंखों के सामने से गाड़ी निकलती है मगर स्टेशन पर रुकवाने का नई
टेंगनमाड़ा से ट्रेन रोज चलती है मगर बैठने का सपना सजाने का नई
जनता हर दिन घुट घुटकर मरती है मगर नेता जी का कुछ जाने का नई
पब्लिक दर्द से कराहती है मगर जनप्रतिनिधि को ज़रा भी जताने का नई
पान ठेले पर गाड़ी की चर्चा करती है मगर सड़क पर बवाल भड़काने का नई
शहर गांव को बहुत दूर से देखती है मगर मेरे करीब आने का नई
भीड़ आंदोलन आंदोलन कहती है मगर सुनो ज्यादा हल्ला मचाने का नई
आंदोलनकारियों को सरकार पकड़ती है मगर घड़ियाली आंसू छिपाने का नई
अत्याचारी शासन जन-मानस की भावना कुचलती है मगर जन-चिंतक की छवि मिटाने का नई
समस्या ही समस्या यहां रहती है मगर सरकार को कभी आईना दिखाने का नई
अजी नेता को जनता ही चुनती है मगर नेता को ये बात ज्यादा समझाने का नई
आश्वासन, खोखले वादे ही जनता की नसों में भरती है मगर कभी वादा निभाने का नई
कांग्रेस, भाजपा, बसपा सब चुनाव लड़ती है मगर किसी को हमारा हक दिलाने का नई
हर पार्टी केवल जनता का वोट हरती है मगर जनता से अपना दिल लगाने का नई
चुनाव से पहले घोषणा की लहर उफनती है मगर चुनाव के बाद याद कराने का नई
अपराधियों की पगंत संसद में ही लगती है मगर वहां दरखास्त लगाने का नई
नेता जनता को पांव के नीचे रगड़ती है मगर उसे कभी भी, कहीं भी गरियाने का नई
विकास की गंगा दिन रात यहां खुलेआम बहती है मगर इसमें डूब के नहाने का नई
यूं ही परेशानियों के बिच जिंदगी गुजरती है मगर उन पर सवाल उठाने का नई
नेताओं की फौज जनता को मूर्ख समझती है मगर ये सच जनता को बताने का नई
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन की अलख
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर,छ.ग.
टेंगनमाड़ा स्टेशन में विभिन्न गाड़ियों के ठहराव के अभाव
से निकले हैं रेलवे की अव्यवस्था के प्रति ये मनोभाव