जनता की कैसी खुशहाली
खुशहाली कैसी जनता की
जनता की कैसी खुशहाली
जनगणमन करता है क्रन्दन
आहत भारतमाता का तन
भागा भागा फिरता है मन
सावन में बरस रही गाली
जनता की कैसी खुशहाली
बढ़ता जाता आतंकवाद
शेरों की आकृति पर विवाद
कृषकों को मिलते बीज खाद
जब रेहन रख देते लाली
जनता की कैसी खुशहाली
मंहगा पेट्रोल और डीजल
बढ़ रही समस्यायें अविकल
निर्धन की दाल न पाती गल
ले रही उसांसें उजियाली
जनता की कैसी खुशहाली
नेता जनता में डाल फूट
जनता के धन को रहे लूट
कर चोरों को है मिली छूट
तिकड़म हर ताले की ताली
जनता की कैसी खुशहाली
जनता भोली, सीधी-सादी
थोड़े में जीने की आदी
बढ़ रही निरन्तर आबादी
गीला आटा घर कंगाली
जनता की कैसी खुशहाली
बेबस हो ऋण लेना पड़ता
आंखों में सूद सदा गड़ता
आ जाती जीवन में जड़ता
बद से बदतर हालत माली
जनता की कैसी खुशहाली
जो बड़े-बड़े भ्रष्टाचारी
जो दानव-दैत्य-दुराचारी
जो काया के कारोबारी
चर रहे देश की हरियाली
जनता की कैसी खुशहाली ।
-महेश चन्द्र त्रिपाठी