टैक्स के बदले क्या…??
केंद्र सरकार और प्रान्त सरकार की आय का स्रोत जनता से बसूला गया टैक्स है यह टैक्स भिन्न भिन्न प्रकार से लगाया और वसूला जाता है , जिसके बदले में सरकार देश की जनता की सार्वजनिक जरूरतों को पूरी करती है साथ ही भविष्य में विकास के लिए भिन्न भिन्न प्रकार की योजनाएं भी अपनाती है।
जनता की सार्वजनिक जरूरतें जो सरकार द्वारा पूरी की जाती है वो है स्वास्थ के लिए हॉस्पिटल और डिस्पेंसरी का निर्माण,शिक्षा के लिए स्कूल और कॉलेज,सुरक्षा के लिए पुलिस प्रशासन और सेना,सड़क निर्माण,रोजगार उपलब्ध कराना और अधोसंरचना का निर्माण करना और भविष्य में निजी व्यवसाय के लिए व्यवसायी माहौल तैयार करना इत्यादि ।
किन्तु अगर भारत देश की सरकार और उसके टैक्स के बदले सार्वजनिक कर्तव्य को समझें तो कर दाता स्वयं को ठगा हुआ ही महसूस करेगा । टैक्स दाता विशेष रूप से आय कर दाता तो स्वयं को ठगा हुआ ही महसूस करेगा ।
सरकारी शिक्षा का हाल ये है कि ना तो इंफ्रास्ट्रक्चर और ना ही अध्यापक और अध्यापक है भी तो वो किसी काम के नही सिवाय सेलरी लेने के । जिसका अर्थ है कि कोई भी आयकर दाता उसमे अपने बच्चों का एडमिसन ही नही कराता, कोई और तो स्वयं उसी सरकारी स्कूल के अध्यापक भी अपने बच्चो को अपने स्कूल में एडमिसन नही कराते। यही कारण है कि आज दिल्ली के किसी भी निजी स्कूल में एडमिसन के नाम पर इतने पैसे बसूले जाते है कि उतने पैसे में बच्चा MBBS कर ले। ये टैक्स दाता को सरकारी शिक्षा सुरक्षा
सरकारी अस्पताल का यह सीन है कि एक एक बेड पर तीन तीन मरीज एक साथ अपनी अपनी ग्लूकोस की बॉटल स्वय पकड़ कर लेटे रहते है , पूरी दवाई नही, पुरे डॉक्टर नही,ना एमबुलेन्स और ना ही स्ट्रेक्चर , सो केबल अति गरीब तबका ही अति मजबूरी के कारण सरकारी अस्पताल से इलाज कराता है। और बाकी सभी को निजी अस्पताल मरीज की ग्राहक और ग्राहक को दशहरी आम समझ कर निचोड़ते रहते है और जब गुठली शेष रहती है तो फ़ेंक देते है। ये है टैक्स दाता को सरकारी स्वास्थ्य सुरक्षा।
अवसंरचना का हाल ये है कि प्रेग्नेंट महिला की डिलीवरी हॉस्पिटल पहुँचने से पहले ही हो जाती है और बड़े बड़े शहरों में ये हाल है कि वहां पर दुरी मीटर किलोमीटर में नही घण्टों में मापी जाती है और नेशनल हाइवे का हाल यह है कि ब्रिज या नई सड़क बनने से पहले टॉल टेक्स बसूली बूथ खड़ा कर दिया जाता है जिसका टॉल कम से कम 3 अंको का होगा। गाँव में रॉड तो आज भी शेर शाह सूरी और अकबर के समय के है। बिजली का हाल ये है कि किसान जिसे देश का अन्न दाता कहते है और उसे MSP, किसान योजना आदि के एहसान से दबा देते है उसके लिए भी बिजली की पर यूनिट 10-15 रूपये है और डीजल तो आप सब देखते ही है और अगर किसान सहकारी से खाद्द खरीदे तो पहले बाबू के हाथ गरम करने पड़ते हैं चाहे गर्मी मौसम हो या शर्दी का। ये है टैक्स दाता को अवसंरचना की सुरक्षा एवं सुविधा।
पुलिस और प्रशाशन तो मासअल्ला है इनसे हर कोई बाकिफ है इसलिए ये हमेशा ना उम्मीद ही है। आप के पैसे चोरी हुए है तो पुलिस इतनी पूछताछ और ऐसे अजीबो गरीब प्रश्न पूछती है कि अगली बार से घर लूट जाने पर भी व्यक्ति रिपोर्ट नही कराता। ताज्जुब तो तब होता है जब परेशान एवं दुखी व्यक्ति से भी हिसाब कर लिया जाता है और यही हाल बड़े बड़े अधिकारियो का जो जनता की समस्यायों से ज्यादा सरकार और नेता की समस्या सुलझाने में यकीन रखते है।
अब टैक्स, टैक्स का यह हाल है कि हर 1-2साल के बजट में कोई नया कर या उपकर जोड़ दिया जाता है कभी भारत के नाम पर तो कभी प्राकृतिक आपदा के नाम पर और सब निश्चित समय के साथ बसूले भी जाते है और अगर देरी हो गयी तो व्यक्ति को टैक्स से ज्यादा हाथ गरम करने के लिए धन की आलाव लगानी पड़ती है। अब फास्टैग को ही लीजिए सरकार ने फास्टैग स्टार्ट किया स्वयं के टैक्स की सही जानकारी और डिजिटल ट्रांजेक्शन।के लिए किन्तु ,फास्टैग खरीदने के लिए आपने 500रूपये दिए जिसकी आपको बिलकुल भी जरूरत नही थी और अब जब फास्टैग से टोल कर्मचारियों का भार कम हुआ सेलरी कम देनी पड़ रही है फिर भी ग्राहक को कोई राहत नही उतना ही टॉल टैक्स। मतलब अपना काम आसान करने के लिए जनता से पैसे ऐंठना। यही हाल GST का, 18 से 20% GST बाजार में घूमने से भी डराता है। यह है कर सुरक्षा।
अब बात महंगाई की तो हर कोई समझ सकता है कि आज के समय सामान्य सा खाना खाना कितना जेब कटाऊ है । अगर तेंदुलकर कमेटी की क्रिटेरिया से देखा जाय यो वास्तव में 70% जनता गरीब हो जाएगी। ये है भोजन और मुलभुत जरूरतों की सरकारी सुरक्षा।
अब वातावरण को लेकर देखें तो हर शहर कार्बन चैम्बर बन चूका है और जनता उसमे सांस लेने के लिए मजबूर है फिर चाहे फेंफड़े काले हो या चमड़ी। अस्थमा हो या केंसर , कोई फर्क नही पड़ता ।ये है सरकारी सांस लेने की सुरक्षा।
और आखिरी बात रोजगार की देखें तो हर युवा समझता है और उनके माता पिता । सरकारी रोजगार तो छोड़ ही दें निजी नोकरी भी मुश्किल होने लगी है यही कारण है कि पढ़े लिखे ग्रैजुएट बच्चे चोरी और गुंडई और 420सी में पड़ रहे हैं। जिससे उनका भविष्य तो अंधकार मय है ही समाज और देश का भविष्य भी उससे ज्यादा अंधकारयुक्त हो रहा है।
समझ नही आता सरकार हमको हमारे टैक्स के बदले कौन सी सुरक्षा उपलब्ध कराती है । टैक्स देने बाले सरकार को भी देते है और हर एक वस्तु, विचार की खरीद पर भी। अर्थात टैक्स देने बाले को ना तो शिक्षा की सुरक्षा,ना सड़क सुरक्षा,ना जीवन की सुरक्षा और ना स्वास्थ्य सुरक्षा और ना ही उनसे सुरक्षा जिनको नियुक्त ही जनता को सुरक्षा देने के लिए किया है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि प्रकृति ने जो शुद्ध वातावरण और ऑक्सीजन की सुरक्षा दी उसको भी छीन लिया।
इसके साथ ही भृस्टाचार इतना है कि सरकारी अधिकारी 40-50 लाख की कार खरीद सकते है मेट्रो शहरो में आलीशान कोठी बना सकते है और विदेशों की यात्रा अपने गाँव की तरह कर सकतें है ।
टैक्स के बदले अगर सरकार कोई सुरक्षा देती है तो वह है योजनाओं की सुरक्षा। हाँ ये सुरक्षा ऐसी है कि देश के प्रत्येक वर्ग के लिए सरकार हर महीने हर चुनाव पर 4-5 योजनाएं बगैर डिमाण्ड के ही दे देती है। और हर किसी के पास उम्र जाति और धर्म के आधार पर अपनी अपनी योजनाएं है।