जनक का जीवन
हर आफत से खुद जो जूझे ऐसी वह चट्टान है
निर्भर उस पर जो रहते हैं उन सबका वह मान है
इंसां रब-सा रुतबा पाता बन जाता है जब पिता
सही ज़रूरत पूरी करता जिद का रखता ध्यान है
कष्ट भले कितने अन्तस में आँखें साहस से भरी
हर सुविधा को तय करने की कोशिश रहती है ख़री
सुविधा भोगी बन सन्तानें जीवन पथ छोड़ें नहीं
उनके पालक के करतब में रहती ये बातें हरी।
शैशव को काँधें पर ढोता, बालक बन कर खेलता
बचपन को बच्चे सम जीता, नहीं समय को रेलता
और जवानी कटे मित्र-सी, रखता ऐसा ध्यान है
बस बच्चों के सुख की ख़ातिर, बाप कष्ट खुद झेलता।