जटायु गाथा
जटायु गाथा
सवैया छंद
सीय बिठा रथ ले चला रावण
जैसे कसाई के हाथ में गायू
कीन्ह पुकार सिया वन में पर
पास कोउ बलवान न आयू
धन्य है भारत भूमि अधर्म कूं
देखके जानकी बाजी लगायू
दुष्ट से नारी के प्राण बचा वन
दौड़ पड़ा एक बूढ़ा जटायू
रावण और जटायु के बीच
छिड़ा घनघोर महारण भारी
दोनहुं वीर लगे करने इक
दूजहि वार निरंतर जारी
युद्ध में क्रुद्ध हो वृद्ध जटायु ने
चोंच दशानन नाभि में मारी
चोंच हथेली पै छेड़ लई तब
बीच में आ मिथिलेश कुमारी
है सठ रावण किंतु इसे
तिनके सम फेक सकूंगी न काका
लाख परीक्षा हो तो घुटने
किसी शर्त पै टेक सकूंगी न काका
आपके हाथों से विप्र मरे
ये ललाट पै लेख सकूंगी न काका
मैं ममता इस दुष्ट को भी
मरते हुए देख सकूंगी न काका।।
गुरु सक्सेना नरसिंहपुर( मध्य प्रदेश)