जजमैंटल
जजमैंटल
सिंधु बड़ी हो रही थी और अपनी माँ से वह दूर भाग रही थी , वह सिर्फ़ सत्रह साल की थी और अपने आपको पहचानने की जद्दोजहद से गुजर रही थी ।
उसकी माँ मीनू किसी जमाने में बहुत सुंदर थी, उनके पति रमेश डाक्टर थे, मीनू जब अट्ठारह साल की थी, रमेश के पास अपने कान की वैक्स साफ़ कराने गई थी , वह उस समय आल इंडिया इंस्टीट्यूट में एम डी कर रहा था, और उसे देखते ही उस पर फ़िदा हो गया था ।
साथ आई माँ से उसने बड़ी तमीज़ से बात की और बातों ही बातों में पता लगा लिया कि वे लोग भी पंजाबी खत्री हैं , और इंस्टिट्यूट के पास किदवई नगर में ही रहते हैं । उनका पता भी ले लिया और साथ में वचन भी कि वह कभी उनके घर ज़रूर आयेगा ।
रमेश ने घर आकर अपनी माँ से कहा वह विवाह करेगा तो इसी लड़की से , उसे सुंदरता के अतिरिक्त कुछ नहीं चाहिए । माँ भी मान गई , और वे दोनों मीनू के परिवार से मिलने आ पहुँचे । रिश्ते की बात सुनकर मीनू स्वयं पर इतरा उठी , उसकी पढ़ाई छूट गई और अपने से सात साल बड़े रमेश से उसकी शादी हो गई ।
यूँ तो मीनू को शुरू से पता था वह सुंदर है, पर उसके सौंदर्य में इतना आकर्षण है , यह उसे विवाह होने के बाद पता चला । मुँह दिखाई की रस्म में सबने रमेश की पसंद की दाद दी , मीनू के पास सौंदर्य था, विशेष शिक्षा नहीं , रमेश की शिक्षा ऊँची थी , परन्तु सौंदर्य विशेष नहीं , इसलिए इस जोड़ी को एक अच्छी जोड़ी समझा जा रहा था ।
मीनू समझ गई उसका ट्रंप कार्ड उसका सौंदर्य है , इसलिए वह हर सप्ताह ब्यूटी पार्लर जाती , दुनिया भर का मेकअप का सामना ख़रीदती , कपड़े बड़े यत्न से चुनती , और घर में भी ऐसे रहती जैसे , बस अभी , बाहर जाने वाली है । इसके अलावा वह खाना भी बहुत अच्छा बनाती थी , घर की देखभाल, रमेश की देखभाल, सब एकदम सही था, और वे दोनों खुश थे ।
समय के साथ उनकी बेटी सिंधु हुई और रमेश की प्रैक्टिस भी चल निकली । सिंधु दिखने पर रमेश पर गई थी , और सिंधु को इस बात की चिंता थी कि इसका विवाह कैसे होगा ! नम्बर कम आने पर कहती , “ रूप तो नहीं ही है , पढ़ाई भी नहीं करेगी तो तेरे साथ शादी कौन करेगा? “ दरअसल यह बात सिंधु को हर उस बात पर सुननी पड़ती , जो माँ के अनुकूल नहीं होती ।
सिंधु को खेलने का शौक़ था , पर मीनू उसे खेलने से टोकती , ‘ यदि चोट लग गई और चेहरा बिगड़ गया तो यह गुज़ारे लायक़ रूप भी जाता रहेगा । ‘ दोपहर को बाहर जाने की सख़्त मनाही थी ।
रमेश माँ बेटी के मामले में ज़्यादा दख़लंदाज़ी नहीं करता था, सिंधु सुंदर नहीं है, इसका दुख उसे भी था , सुंदर लड़कियों को देखकर रमेश जैसे उनकी तारीफ़ करता था, सिंधु उसके बिना कुछ कहे भी सब समझ गई थी कि उसके पापा उसकी माँ की तरह ही सोचते हैं ।
सत्रह साल की होते न होते सिंधु एक लावा बन गई । गाढ़ा रंग पहनने पर माँ ने टोका तो , उसने फटते हुए कहा,
“ ब्यूटी पार्लर, शापिंग , किचन , इसके अलावा कुछ जानती हो ? अपनी तो ज़िंदगी बर्बाद कर चुकी , अब मेरी करना चाहती हो ।”
मीनू सकते में आ गई । उसने रात को यह बात रमेश से कहीं तो रमेश तटस्थ बना रहा, उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि यह हो क्या रहा है । मीनू ने बहुत रोना धोना मचाया तो उसने सिंधु से कहा ,
“ जाकर अपनी माँ से माफ़ी माँगो । “
“ क्यों । “
इस क्यों का उत्तर उसे ठीक से समझ नहीं आया , थोड़ा सोचकर उसने कहा , “ वह रो रही है ।”
“ तो ?”
इस तो का उत्तर तो उसे और भी कठिन लगा , उसने एक ज़ोर से तमाचा जड़ दिया ।
अपमान से सिंधु का चेहरा लाल हो गया , परन्तु उसने एक भी आंसू नहीं बहाया , बल्कि भभकती आँखों से रमेश को देखती रही । रमेश कुछ देर असमंजस में खड़ा रहा , फिर चुपचाप चला गया ।
मीनू और रमेश को लग रहा था , सिंधु उनके हाथ से निकल रही है। मीनू का समय अब अपने सौंदर्य को बनाए रखने के अलावा रोने धोने में भी जाने लगा । वह लाख सिंधु से बात करने की कोशिश करती, परन्तु सिंधु अपने में ही व्यस्त रहती , घंटों अपने मित्रों से फ़ोन पर बात करती , परन्तु माँ बाप से बस ज़रूरत की ही बात होती ।
सिंधु का बारहवीं की परीक्षा परिणाम आया तो मीनू और रमेश खुश हो गए । रमेश ने कहा,
“ चलो कहीं बाहर चल कर डिनर करते है। “
हमेशा न करने वाली सिंधु मान गई । डिनर पर रमेश ने कहा ,
“ तुम्हारा रिज़ल्ट देखकर तो मज़ा ही आ गया , बोलो तुम्हें क्या गिफ़्ट चाहिए?”
“ जो मुझे चाहिए आप नहीं दोगे ।”
“ अरे ऐसी भी क्या चीज़ है जो मैं अपनी बेटी को नहीं दे सकता ।” रमेश ने सिंधु के गाल थपथपाते हुए कहा ।
“ मुझे हास्टल जाना है और बी . ए करके आय. ए. एस करना है ।”
रमेश और मीनू सकते में आ गए । कुछ पल शांति छाई रही । मीनू के आँसू निकल आए । सिंधु ने देखा तो मुँह बना लिया ।
“ अब तुझे हम इतने नापसंद हो गए हैं कि तूं हमारे साथ घर भी नहीं रहना चाहती ? अभी से यह हाल है तो हमारे बुढ़ापे में हमें क्या देखेगी ?” माँ ने आँसू बहाते हुए कहा ।
“ मैंने कहा था न आप मुझे नहीं दे पायेंगे ।” उसने रमेश को चैलेंज करते हुए कहा ।
“ नहीं , मैं भेज सकता हूँ , पर मुझे इसकी वजह भी तो समझ में आए ।”
“ वजह बस इतनी है कि मम्मी को मेरे पीछे पड़े रहने के अलावा कोई काम नहीं, उन्हें पता ही नहीं उन्हें अपने टाईम के साथ क्या करना है।”
सुनकर अपमान से मीनू की आँखें जल उठी, रमेश ने राहत की साँस ली कि यह उसके कारण नहीं है । कुछ क्षण बाद रमेश ने कहा ,
“ मुझे लगा था तुम किसी मैडीकल लाईन में जाओगी ।”
“ नहीं , मेरी उसमें रूचि नहीं है , और मैं जल्दी से जल्दी सैटल होना चाहती हूँ, मैं इकनॉमिकस और हिस्ट्री के साथ बी ए करना चाहती हूँ ।”
“ लड़कियों के लिए मैडीसन सबसे अच्छी लाइन है। “ माँ ने नार्मल होते हुए कहा ।
सिंधु ने इसका जवाब देना ज़रूरी नहीं समझा, और उसने उन दोनों से नज़र हटा ली ।
अगले दिन रमेश ने खाने की मेज़ पर कहा, “ मैंने सोच लिया है , तुम्हें तुम्हारा तोहफ़ा दिया जाए, तुम हासिटल जा सकती हो , पर दिल्ली में ही, और हर सप्ताहांत घर आओगी ।”
सिंधु उछल पड़ी, थैंक्यू पापा , और इस ख़ुशी में साथ बैठी माँ को भी महीनों बाद गले लगा लिया । मीनू ने उसे कसते हुए कहा ,
“ माँ बाप तो बस अपने बच्चों की ख़ुशी चाहते है । “ सिंधु को यह सुनकर थोड़ी खीझ हुई , पर उसने जाने दिया ।
सिंधु हर सप्ताहांत घर आती , और हमेशा बहुत अच्छे मूड में होती , मीनू और रमेश देख रहे थे वह बदल रही है , उसका आत्मविश्वास बड़ रहा था । फिर एक दिन सिंधु ने बीए कर लिया और आय एस की तैयारी के लिए घर आ गई, व्यस्तता के कारण वह माँ से बहुत बातें नहीं करती थी , परन्तु पहले की तरह जवाब भी नहीं देती थी । दो साल की कड़ी मेहनत के बाद वह आय एस की रैंकिंग में पचासवें नंबर पर पास हो गई । मसूरी के बाद उसको पहली पोस्टिंग भोपाल में मिली तो मीनू ने कहा ,
“ मैं भी कुछ दिन तुम्हारे साथ चलूंगी ।”
“ ज़रूर माँ ।” सिंधु ने मुस्कुराते हुए कहा ।
सिंधु अपने काम में व्यस्त हो गई , मीनू के पास करने के लिए कुछ विशेष नहीं था फिर भी अपनी बेटी को इस तरह सफल देखकर वह बहुत खुश थी , पर फिर भी , उसे यह भय लगा रहता था कि शायद सिंधु को अपने रूप रंग के कारण कोई अच्छा लड़का न मिले , उन्हें यह भी भय था कि इतनी आत्मनिर्भर लड़की शायद शादी में एडजैस्ट न कर पाए ।
एक दिन मौक़ा देखकर मीनू ने सिंधु से यह बात चलाई , तो वह हंस दी , “ शादी तो मैं करूँगी , पर उससे जो मुझे सच में प्यार करे , प्यार का दिखावा नहीं ।”
“ क्या मतलब , तेरे पापा मुझसे प्यार नहीं करते ?”
“ मैंने तो ऐसा नहीं कहा ।”
मीनू चुप हो गई, और न जाने क्यों उसके आँसू निकल आए ।
“ आप रो क्यों रही हैं मां , पापा तो आपको पहली नज़र में ही दिल दे बैठे थे ।”
कुछ देर अपने को सँभालने के बाद मीनू ने कहा, “ पता नहीं क्यों आजकल सब ख़ाली ख़ाली लगता है , पैसा है, इज़्ज़त है, इतनी गुणी संतान है , फिर भी संतोष नहीं है । “
सुनकर सिंधु का दिल भर आया , उसने कहा , “ इस उम्र में औरतों को अक्सर ऐसा होता है , आप मेरी फ़िक्र मत करो, पापा के पास चली जाओ, वहाँ आपका मन शांत रहेगा ।”
“ हु । “ कहकर मीनू सोने चली गई ।
ज़िंदगी में पहली बार उसे अपने पति रमेश पर ग़ुस्सा आ रहा था, कैसे उसकी वजह से उसकी पढ़ाई पूरी नहीं हुई थी , कैसे वह अपने काम में व्यस्त रहता है और उसे समय नहीं देता , कैसे वह पार्टी में जाकर उसकी उपेक्षा करता है । उसका इंगलिश न बोल सकने के कारण उसका मज़ाक़ उड़ाना , वह हैरान थी , यह सब उसके साथ सालों से होता आ रहा है और उसे पता ही नहीं चला !!
अगले दिन सुबह उठी तो उसकी आँखें सूजी हुई थी , चेहरा उतरा हुआ था । सिंधु जल्दी में थी , वह आफ़िस चली गई, मीनू बाल्कनी में उदास घंटों बैठी रही , शाम को सिंधु आई तो उसने देखा, माँ का चेहरा अभी भी उतरा है, वह रोज़ की तरह तैयार भी नहीं हुई है । उसने माँ से कहा कुछ नहीं पर उसे उनकी चिंता होने लगी । वह कोशिश कर रही थी कि माँ को समय दे, उनके साथ कहीं घूम आए, पर माँ के साथ यूँ ही बतियाते रहने की आदत उसकी बरसों पहले छूट गई थी ।
एक दिन वह रात को अपने बिस्तर में बैठी किताब पढ़ रही थी कि , अचानक माँ को अपने कमरे में आया देख चौंक उठी ,
“ क्या हुआ माँ , आप ठीक हो न ?”
“ नहीं , मैं ठीक नहीं हूँ । “
“ क्या हुआ?” और साथ ही माँ को रज़ाई में आने का निमंत्रण दे दिया ।
माँ आ गई तो उसने उनके कंधों पर अपनी बाँह फैला दी , “ अब बोलो क्या बात है?”
“ सिंधु तूं मुझसे प्यार नहीं करती?”
“ यह कैसा सवाल है, अफकोर्स करती हूँ ।”
“ दूसरी बेटियों की तरह तूं अपनी माँ से बात नहीं करती ।”
“ सारी । मुझे इतनी टाईम ही नहीं मिलता ।”
“ पहले कितना ग़ुस्सा रहती थी मुझसे , फिर घर छोड़कर होस्टल चली गई ।”
कुछ देर माँ को देखने के बाद उसने अनिच्छा पूर्वक कहा, “ मुझे दूसरों को जज करना अच्छा नहीं लगता, आप हर वक़्त किसी न किसी की शिकायत करती रहती हो, और उम्मीद रखती हो मैं आपकी हाँ में हाँ मिलाऊँगी ।”
“ बस , इतनी सी बात! “
“ यह इतनी सी बात नहीं है मां , “ फिर थोड़ा रूककर उसने कहा,” सच तो यह है आप अपने आपको प्यार नहीं करती, इसलिए इतनी जजमैंटल हो, हर वक़्त पापा से वैलीडेशन माँगती रहती हो, आप दोनों पति पत्नी का रोल जी रहे हो, आपका संबंध भी एक रोल प्ले ही है, इसलिए आपको इतना ख़ाली ख़ाली लगता है, और पापा के पास काम करने के अलावा कुछ है ही नहीं ।”
दोनों बहुत देर शांत बैठी रही , फिर माँ ने कहा,
“ बहुत देर हो गई है मैं अपने कमरे में जाती हूँ ।”
माँ चली गई तो सिंधु को लगा, शायद माँ यह सब सुनने के लिए तैयार नहीं थी, वह और ज़्यादा परेशान हो गई होंगी , पर सच तो यही है, वह यदि होस्टल न जाती तो माँ जैसी बन जाती, या उसका पूरा व्यक्तित्व घुट जाता । पर वह खुद को प्यार करती थी, और स्वयं को खोना नहीं चाहती थी । फिर भी उसका मन बेचैन था, वह उठी और वर्षों बाद माँ के कमरे में जा माँ के बिस्तर में घुस गई , और उस रात दोनों का आंसुओं का सैलाब बह निकला, वह देर रात तक रोते रोते सो गई ।
सुबह उठी तो दोनों के चेहरे पर एक ख़ुशी थी । सिंधु आफ़िस चली गई तो माँ ने आईने में देखा, उनके बाल बीच में सफ़ेद होने शुरू हो गए थे, फेशियल का भी समय हो गया था , पर आज पहली बार उन्हें कोई हड़बड़ाहट नहीं थी, सुंदर दिखने से ज़रूरी और भी कई काम हैं, इस अहसास से ही उनके मन का ख़ालीपन दूर हो गया था ।
— शशि महाजन
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