जग गया भारत : जितेंद्रकमल आनंद ( पोस्ट १६२)
जग गयी भारत हमारा देश भावन।
छँट गये बादल तमिस्रा के घनेरे ।।
है मदन- उत्सव ,खिलीं कलियॉ सुरभि भर
मधुकरों के साथ मिल मृदुहास करतीं
आम्र तरु की ये महकतीं मंजरी पर ।
कूकतीं कोयल महक से सॉस भरतीं ।
चढ जगत के मंच पर यह खुशियॉ बिखेरे।।
दे रही थी वेदना मुख म्लान कर जो
मिट चुके वे द्वंद्ध दुख सारे झमेले ।
हो चुके अम्लान अब अक्लांत हम हैं ।
लेखनी है साथ मेरे , कब अकेले ।
थाम ली पुरुषार्थ ने छेनी- हथौड़ी ।।
रूप रच पाषाढ में जीवन उकेरे ।।
— जितेंद्रकमलआनंद
सॉई विहार कालोनी रामपुर ( उ प्र )२४४९०१
दिनॉक १९-१२-१६