जग के दोहे-2….
कितना आसान लगता , मढ़ देना आरोप ।
सत्य झूठ जाने बिना, देते हो तुम थोप ।।
भेड़ो की चाल चलकर, जाते उनकी राह ।
सोचकर निज विवेक से, सच की जानो थाह ।।
शब्द शब्द चोट करते, होते अगर असत्य ।
निराशा से मन भरता, बोझिल लगते तथ्य ।।
हाथ जोड़ विनती करूँ, मैं दीन हीन अल्प ।
झूठ अधिक चलता नहीं, साक्षी रहता कल्प ।।
सबसे मधुर स्नेह रखो, जीवन हैं अनमोल ।
बिक जाते बिन भाव के, सुनकर मीठे बोल ।।