जग का राजा सूर्य
उठो सुंदर जग के प्यारे,
भोर का राजा ताज सजाए नजर आए,
आसमान से देख-देख मुस्कुराए ।
लालिमा लिए चमकती आभा देख,
किरणों से रंग-बिरंगे संसार को सजाए,
धीरे-धीरे जग को जगाए ।
देख प्रकाश को बहती जाए ,
नदिया झरने सरोवर की लहरें गीत गुनगुनाए ,
सुरमई संगीत धरा को भाए ।
पेड़-पौधे पवन संग मिल ,
ठंडी समीर पुष्पों के बीच गुजरती आए,
सुगंधित कर वातावरण को महकाए ।
ऊंँचे पर्वत स्थिर है जग में ,
खड़े हुए सब राज दरबार है सजाएं,
स्वागत में जैसे आंँखें हैं बिछाए ।
आकर के सूर्य दोपहर के मध्य,
आसन ग्रहण कर नभ में ऊपर बैठे ,
संसार के हर कोने झांँके ।
धूप पसीना खूब बहा कर ,
पशु-पक्षी संसार जनों से मिलकर दिन-भर ,
सांँझ होते लौटते घर को ।
डूब जाते निद्रा में जब ,
अंधकार मौका पाकर आए लगा डराने ,
अगली सुबह आकर अंधकार भगाते ।
रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर ।