जगमग जगमग दीप जलें, तेरे इन दो नैनों में….!
जगमग–जगमग दीप जलें, तेरे इन दो नैनों में
दीपावली कोई गीत गढ़े, तेरे इन दो नैनों में
रूप जवानी का दीपक है बारे
पलकें जो तेरी काजल हैं पारे
मोती जैसा तन चमकीला
आँचल सितारों को भरता सजीला
दीपावली कुंदन मढ़े, तेरे इन दो नैनों में
जगमग–जगमग दीप जलें, तेरे इन दो नैनों में
अंदर–बाहर, नीचे–ऊपर
है उजियारा जगमग–जगमग
देहरी–चौखट, बाती–दीपक
रूप से तेरे हों जो जीवक
दीपावली रंगोली कढ़े, तेरे इन दो नैनों में
जगमग–जगमग दीप जलें, तेरे इन दो नैनों में
पत्थर भी मादल बन जाते
थाप जो चरणों के पाते
हिरनी जैसी चाल है तेरी
पाँव में बाजे पायल छम–छम
दीपावली मधु–छंद पढ़े, तेरे इन दो नैनों में
जगमग–जगमग दीप जलें, तेरे इन दो नैनों में
मनदीप में हैं दीप जलाते
अंतस् अँधेरों को दूर भगाते
चेहरा तेरा मौसिकी है बिखेरे
मन–ग्रंथों ने सरगम उकेरे
दीपावली बन राग चढ़े, तेरे इन दो नैनों में
जगमग–जगमग दीप जलें, तेरे इन दो नैनों में
सरिता भी सागर में मिल जाती
मस्ती में लहरें हैं लहराती
चाँदनी बन प्रणय–कामना
अंबर से छन–छन के है आती
दीपावली ले ज्योति बढ़े, तेरे इन दो नैनों में
जगमग–जगमग दीप जलें, तेरे इन दो नैनों में
––कुँवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह✍🏻
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