जख्मो से भी हमारा रिश्ता इस तरह पुराना था
जख्मो से भी हमारा रिश्ता इस तरह पुराना था
गिराया उसने जिसने चलने मे हाथ थामा था ,
उजाले चुभते थे आंखों में हमारे इस कदर…..
उन्ही दरख्तों का हमारे जहन में आना जाना था
रास्तों में फक्त जख्म दिखाते भी तो किसको हम
रातों की निशा गहरी थी बताते भी तो किसको..
रास्तों में जो देखा था फक्त एक महज ही निकला
रास्ता जो कठिन था वह तो सहज ही निकला…!
जिंदगी की हसरतें छोड़ दी इस आस में हमने
कोई सूरज ही होगा अपना इस आस में हमने
कई ठोकरे खाई है अपनों पर विश्वास में हमने
कई ऐसे रोशन दान देखे हैं आवाज में हमने !
अपनी ही नाव में हमने ऐसे सुराख देखे हैं….
निशानी देते हैं हमको ,ऐसे निशान देखे है..
हाथों मे संघर्षों से निकाल के आया है सूरज
इन्हीं हाथों की लकीरों में अपने पैगाम देखे हैं
✍️Deepak saral