जकिया जाफरी एक मज़लूमा !
ज़किया जाफ़री
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ये ज़किया बी हैं, आप लोग जानते हैं क्या इन्हें ? शायद जानते हों पर भूल गए होंगे, मैं भी भूल गई थी एक मित्र ने जब इनके नाम का ज़िक्र किया तो तत्काल याद नहीं कर पाई, कारण बहुत सारे हैं। अब इतने नाम हो गए हैं शोषितों के कि सब को याद रख पाना मेरे जैसे दिमाग़ के लिए मुश्किल होता है, पर ध्यान से कई दिनों तक सोचने पर याद आया,साथ ही ये ख्याल भी की हो सकता है आप लोग भी इन्हें न चाहते हुए भी भूल गए होंगे पर कोई बात नहीं, जब हमें याद आ ही गया है तो हम फिर से याद दिलाने की कोशिश करते हैं आप लोगों को ।
28 फरवरी 2002: गुजरात दंगों के दौरान हुए हत्याओं में एक हत्या इनके पति की भी हुई थी। इनके पति एक पूर्व सांसद थे जिनका नाम था ‘एहसान जाफरी’ और ज़किया इन्हीं की विधवा हैं। एह सान जाफरी वो 72 साल के वो बुजुर्ग थे जो कभी सरकार का हिस्सा हुआ करते थे, उस काली रात को वो तमाम अफसरों और नेताओं से गुहार लगाते रह गए फोन केद्वारा,किसी ने नहीं सुनी ज़बाब क्या मिला वो ही जानते होंगे, या ज़बाब देने वाला।
मैं तो पत्र-पत्रिकाओं से बस इतना ही जान पाई उन्हें किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली मौजूदा सरकार से। बस मौत मिली वो भी भयानक उनके घर को तीन दिनों तक जलाया गया उनके साथ ही जिसमें वो जिन्दा जलाये गए थे।और इसके बाद ही शुरू हई इंसाफ की अशली लड़ाई का एक लंबा दौर, जो आज भी खत्म नहीं हुआ है। आज भी उनकी बेबा अदालतों के चककर काट रही है। जकिया जाफरी ने अपने पति की हत्या के खिलाफ तत्कालीन डीजीपी को खत लिखा। जाकिया ने हाई कोर्ट में भी ये अर्जी दी कि नरेंद्र मोदी समेत 63 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किए जाएं। हाईकोर्ट से जकिया के अर्जी ख़ारिज कर दिए जाने पर सुप्रीम कोर्ट में उस फैसले के खिलाफ चुनौती दी। 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी को उन 63 लोगों की जांच के आदेश दिए, जिनपर जाकिया ने एफआईआर दर्ज करने की अपील की थी। इस केस में पहला चश्मदीद कोर्ट के सामने पेश हुआ तो उसने कोर्ट को बताया कि एहसान जाफरी ने मोदी समेत कई लोगों को मदद के लिए फोन किए थे। जिस के बाद अभी के प्रधान सेवक से घंटों पूछताछ की गई। लेकिन हुआ वही ढाक के तीन पात नरेंद्र मोदी समेत अन्य लोगों को क्लीन चिट मिल गई। जिसके ख़िलाफ़ ज़किया बी ने फिर एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में लगाई है, जिसका अभी भी फैसला आना बांकी है। आप लोग सोच रहे होंगे इतने पुराने केश को याद कर के क्या होगा ? सोचिए इस मामले या ऐसे कहें कि 2002 के नरसंहार पर अगर 2014 में मिडिया या उस के आरोपी इतनी खूबसूरती से पर्दा नहीं डालते, जैसे आज अभी कोई सांस भी लेता है तो मिनट सकेंड को मिडिया ऐसे दिखाती है जैसे,हम तो यूँ ही जी लेते हैं, साँस लेना तो बस प्रधान को आता है।ऐसा ही तबज्जो अगर गुलबर्ग केस को जगह दी गई होती तो शायद देश आज दूसरे हालात में होता।
ख़ैर जाने दीजिए जो हुआ सो हुआ अब भी तो, मैं ये सोच रही थी कि इन्द्राणी जैसी औरत जिसने अपनी सगी बेटी को अपने चमचों के साथ मिल कर जिंदा जला देने वाली माँ की बात पर अगर ‘पी चिदंबरम’ जो कि कभी राज पाल हुआ करते थे देश के गणमान्य में गिने जाते थे। जब उनकी गिरफ़्तारी हो सकती है, तो ज़किया जाफ़री के बयान पर प्रधान की क्यूँ नही ???
कुछ हो न हो इस बार हम ज़किया बी और उन सभी सताए लोगों को अपने जेहन में रखेंगे जिनकी आवाज़ को दवाने के लिए देशभक्ति और हिंदू राष्ट्र की गोली दी जा रही है। उम्मीद है आप लोग भी याद रखने की कोशिस करेंगे।।। शुभ रात्रि। … ।।
…सिद्धार्थ