जंग
जात-पात और भेदभाव से अब लड़ने की बारी है,
उठो साथियो, आज़ादी की जंग अभी भी जारी है l
जिस आज़ादी की खातिर, वीरों ने फंदे चूमे थे,
सुनकर जिसके अमर तराने शीश करोड़ों झूमे थे l
जिसकी खातिर बैसाखी भी लहराती तलवार बनी,
बिन हाथों वाले भी लेकर विजय पताका घूमे थे l
वीरों की इस कुर्बानी पर, हंसता भ्रष्टाचारी है,
उठो साथियो आज़ादी की, जंग अभी भी जारी है l
कहने को कागज़ पर हम, अंग्रेज़ों से आजाद हुए ,
लेकिन आपस में लड़ लड़ कर, खुद ही यूं बर्बाद हुए l
बेशकीमती आज़ादी का, ऐसा सत्यानाश हुआ,
उजड़ रही है गौशालाएं, मयखाने आबाद हुए l
नचा रहा बाहर से आकर, हमको एक मदारी है ,
उठो साथियो आज़ादी की, जंग अभी भी जारी है l
हिंदी की रोटी खाकर हम, अंग्रेज़ी की गाते हैं,
हिंदी की महिमा-गरिमा को, पिछड़ापन बतलाते हैं l
अंग्रेज़ी के आगे पीछे , चलना ऐसा भाता है ,
बना द्रौपदी हिंदी को हम, दु:शासन बन जाते हैं l
दासों जैसी सोच हमारी, खुद हम पर ही भारी है,
उठो साथियो आज़ादी की जंग अभी भी जारी है l
-राजीव ‘प्रखर’
निकट राधा कृष्ण मन्दिर,
मौहल्ला डिप्टी गंज,
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