जंगल में पारित प्रस्ताव (कहानी)
_जंगल में पारित प्रस्ताव (कहानी)_
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जंगल के राजा शेर का दरबार लगा था । हर महीने की पूर्णमासी को जंगल में शेर अपना दरबार लगाता था । इस दिन जंगल के सारे निवासी पशु- पक्षी उपवास रखते थे । शेर भी उपवास रखता था । कोई जानवर किसी दूसरे जानवर को मारकर नहीं खाता था । दूर-दूर से सारे पशु पक्षी दरबार में शामिल होने के लिए आते थे।
इस बार जब दरबार लगा तो शहर से आई हुई एक चिड़िया ने चहचहाते हुए कहा “महाराज मैं आपको एक खुशखबरी सुनाना चाहती हूँ।”
” स्वागत है ।”-शेर ने कहा ।
” महाराज !आजकल मनुष्य आपस में ही लड़- मर कर खत्म होते जा रहे हैं ।उनकी आबादी घट रही है ।”
शेर आग बबूला हो गया । “इसमें नई बात कौन सी है ? मनुष्य तो सैकड़ों हजारों सालों से आपस में लड़ते ही रहते हैं । कभी तलवारों से लड़ते थे। फिर बंदूकों से लड़ने लगे। तोपों से लड़े । एटम बम से लड़ने लगे। उनका तो काम ही लड़ना है । जंगली हम कहलाते हैं । मगर हमसे महाजंगली तो यह शहर में रहने वाले इंसान हैं। ”
” नहीं महाराज ! मैं उस लड़ाई की बात नहीं कर रही हूँ।”-चिड़िया बोली।
” फिर कौन सी लड़ाई ?”
“महाराज ! एक अजीब बीमारी इन दिनों मनुष्यों के बीच में आ गई है । आदमी, आदमी को छूता है और इतने भर से वह आदमी मर जाता है। हजारों लोग एक दूसरे को छूने से मरते जा रहे हैं।”
” क्या कह रही हो तुम ? ऐसा कैसे हो सकता है? ऐसा तो कभी नहीं हुआ?”
” महाराज ! मैं यही बात बताना चाहती हूँ।”
” विस्तार से बताओ चिड़िया रानी ! हम भी तो सुनें कि आखिर शहर में आदमी के साथ क्या हो रहा है ?”
“महाराज ! एक नई बीमारी आई है। जिसको यह बीमारी लगी , उसने दूसरे आदमियों को छुआ ।तब उनको वह बीमारी लग गई । फिर उन्होंने अन्य आदमियों को छुआ । इस तरह बीमारी फैलती जा रही है। इस समय आदमी, आदमी को छूने से डर रहा है। छुआ और गया ।”
“हा हा हा ! यह तो बड़ा सुंदर समाचार आया है। आदमी ने हमारे साथ बहुत बुरा किया है । मैं जंगल का राजा हूँ। लेकिन मुझे पकड़कर चिड़ियाघर में आदमियों के मनोरंजन के लिए पिंजरे में कैद करके रख दिया जाता है । लोग मुझे देखने आते हैं और तालियाँ बजाते हैं । सचमुच ऐसा अपमान असह्य होता है !”
” महाराज आपने सही कहा ! मनुष्य ने मुझे भी पिंजरे में बंद करके अपने घरों में टाँग रखा है । बस हरी मिर्च खिला देते हैं और समझते हैं कि मैं खुश हूँ। वास्तविकता यह है कि मैं रोता हूँ और आजाद होना चाहता हूँ।”- तोते ने अपनी दुख भरी कहानी सुनाई।
” मछलियों की व्यथा मैं सुनाना चाहता हूँ- बगुले ने बताया “महाराज !इतना प्रदूषण नदियों में कर दिया है मनुष्य ने कि मछलियाँ मरने लगी हैं और नदी का जल अब मछलियों के रहने योग्य नहीं रह गया है। नदियों का जल उद्योगों की गंदगी बहा- बहा कर आदमी ने इतना प्रदूषित कर दिया है कि वह आदमी के स्वयं नहाने योग्य भी नहीं रह गया है । पीने की तो बात ही और है । हमारी मछली बहने उसमें साँस भी नहीं ले पाती हैं।”
तभी कुछ कौए भी वहाँ आए और कहने लगे “महाराज हमें भी उड़ने में बड़ी परेशानी होती है। वातावरण बहुत दूषित है । साँस कैसे लें ?”
बिल्ली भी वहाँ मौजूद थी। बिल्ली बोली “मैं तो शहरी जानवर कहलाती हूँ। मेरा तो मनुष्यों के घरों में रोजाना आना- जाना रहता है, लेकिन जब से मनुष्यों को बीमारी लगी है, मुझे बड़ी खुशी हो रही है। कम से कम अब चैन की साँस तो ले पाती हूँ।”
चील ने कहा “महाराज ! मैंने अपने जीवन में पहली बार हवा को इतना शुद्ध महसूस किया है। मैं तो आसमान में बहुत ऊपर तक उड़ती हूँ। लेकिन कभी भी इतनी साफ हवा मैंने महसूस नहीं की।”
शेर ने सबकी बातें सुनी और कहा कि इस खुशी के अवसर पर मैं एक प्रस्ताव रखना चाहता हूँ : –
” आज मनुष्य जाति आपस में ही एक दूसरे को छू- छू कर मौत के घाट उतार रही है । अतः मनुष्य जाति समाप्ति की ओर अग्रसर है। प्रकृति के लिए यह एक सुखदाई समाचार है। इससे नदियाँ, पहाड़, पर्यावरण और सारे पशु पक्षियों को नया जीवन मिलेगा। संपूर्ण धरती जंगलों में बदल जाएगी तथा एक नए आनन्दमय युग का प्रारंभ होगा। हम मनुष्य जाति के नष्ट होने की कामना करते हैं।”
इसके बाद शेर ने सब की राय ली तो सबने जोर से तालियाँ बजाकर प्रस्ताव का समर्थन किया । शेर ने प्रस्ताव के पक्ष में अपना हस्ताक्षर अंकित किया । लेकिन उसी समय कबूतर आगे बढ़कर उस कागज को अपनी चोंच में दबाकर आसमान में उड़ गया।
शेर गुर्राया बोला ‘ यह तुमने क्या किया ? ”
कबूतर बोला “मैं मनुष्य को उसकी करनी के बारे में सचेत करने जा रहा हूँ और बताऊँगा कि इन दिनों तुम जैसे प्रकृति के अनुरूप रह रहे हो, भविष्य में भी वैसे ही रहना सीखो । अन्यथा तुम्हारे बारे में संसार के पशु पक्षियों की राय बहुत बुरी है।”
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लेखक : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 5451