जंगल में दरबार
उपचुनाव की हार से, कैसा हाहाकार
बुआ भतीजा सोचते, जीत लिया संसार
गठबंधन पर पड़ रही, टुकड़ा टुकड़ा धूप
सभी मुखौटे खुल गए, दिखता असली रूप
गीदड़ अब लगवा रहे, जंगल में दरबार
हुआँ हुआँ चिल्ला रहे, सारे रँगे सियार
अफसरशाही मस्त है, जनता है लाचार
सूख रहीं फसलें मगर, फलता खर पतवार
शेर अकेला हो भले, किन्तु नहीं लाचार
जंगल में मंगल रहे, करता यही विचार
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद
मोबाइल 9456641400