छोटे से गाँव को नए साल की शुभकामनाएं 😍😎❤️
” खेतो की मेड़ो पर धूल भरे पाव को
कुहरे में लिपटे उस छोटे से गाँव को
नए साल की शुभकामनाएं ”
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की यह पँक्ति गाँव के उस पिछड़े से इलाकों और किसानों के रंगभूमि को बख़ूबी निखारता है । मेड़ा पर औस, कुहासा , ठंडापन, सिहरन ,गलन यह सभी ठंडी के मौसम के कुछ लक्षण हैं , जो गाँव के लोग बड़े ही चाव से अंगीठी जला कर बिता देते हैं ।
पुराना साल का खत्म हो जाना उंन्हे नही मालूम ,मालूम रहता भी है तो वह अपने गेहूं की भराई कर उसके खुशी में जी लेते हैं । नया साल का नया दिन आना उनके लिए वैसे ही जैसे वह बारह महीने के दिनों में अपने खेत पालो, रिश्तेदारो और अपने बाग बगीचे के साथ बिता देते हैं ।
नया साल का धूम और साल की आखरी दिन की ताबड़तोड़ तबाही और तैयारी तो गाँव के दूसरी छोर शहर के शुरुआती कस्बे से देखने को मिलता है डीजे , गाना, बजाना ,नाच यह सभी रात के प्रोग्राम अपने अपने दोस्तों और घर बार के लोगो के साथ लगा ही रहता है । कई कई जगह तो साज सज्जा ,चाइना वाला लाइट भी लगी होती है जो प्रकाश देने का कार्य करता है , आज और बीते हुए कल के दिन तो मुर्गा,मटन, और दारू तो पानी के तरह बहते है ।
खैर गाँव से याद आया कि वहां के लोग अपने खेती बाड़ी में उलझे ही रहते हैं उंन्हे अपने खुशियों को व्यक्त करने के लिए ज्यादा ताम झाम नही करते , वे बड़े आराम से अपना पसंदीदा भोजन चोखा बाटी तैयार कर लेते है और खा कर मस्त रहते हैं ।।
—rohit ❤️