छोटू की चाय
वक्त बेवक्त कभी भी याद आ जाती हूं ।
किसी का दर्द तो थके हुए की थकान मिटाती हूं ।
लोग मुझे चाय कहते है।
अक्सर इसी जर्मन की केतली में
उस ठेले वाले छोटू के हाथ में नजर आती हूं ।
कोई मुझे पीने के बहाने ठेले तक घूम आता है ,
तो कोई मुझे दफ्तर में बैठे 3 बजने पर आवाज लगाता है ।
कभी कभी लेट होने पर कोई मुझे 2 बात भी सुनाता है ।
मालूम है मैं आयुर्वेद की नजर में, मैं जहर हूं ।
फिर भी कुछ लोग थकान
और सर दर्द का इलाज मुझे बताते है।
मैं चाय हूं साहब ।अक्सर इसी जर्मन की केतली
में उस ठेले वाले छोटू के हाथ में नजर आती हूं ।