छोटी चाची
डा. अरुण कुमार शास्त्री / एक अबोध बालक / अरुण अतृप्त
** छोटी चाची –
छोटी चाची तो एक भाव एक माध्यम मात्र अभिव्यक्ति का, उसमे छुपी सम्पूर्ण नारीहृदय पीड़ा को समाहित रचना है ये पढ़ते पढ़ते नयन गीले हो जायेंगे कोरों तक तब मानिये स्वीकार कीजिये कहीं हम जी हाँ कहीं हम तो जिम्मेदार नहीं इस पीड़ा अवसाद या अवसादित मनोदशाओं के क्यों आहत हैं नारी आज क्यों आखिर क्यों । माँ पिता आखिर क्यों नही सम्भाल पाते अपनी लाडली बेटियोँ की भावुकता को कोमल एहसासों को या उनके अंदर उफनती जिज्ञासाओं को ।
हर लड़की आज भी छोटी चाची ही होती है जन्म से
ये केवल छोटी चाची की कहानी नहीं हैं,ये तो हर लड़की जो कभी किसी की छोटी बहन, दीदी, बुआ, भतीजी, भगिनी, बेटी होती हैं और जो उनकी जननी होती है ,उनकी भी यही कहानी होती हैं क्योंकि पूर्व में तो वे भी इन्हीं संबंधों में एक होती हैं। आज समय बदल रहा हैं, लड़कियां पढ़ लिखकर ,नौकरी करके पैसे कमाकर और किसी बड़े छोटे का परवाह न करके आत्मनिर्भार होकर अपने मनमाना ढंग से जीने लगी हैं,तब अब परिवार बिखर रहे हैं, पहले बेटियां ससुराल में बिखरती थी,अब समस्या अलग तरह से हैं। मुझे लगता है इस पीड़ा को व्यक्तिगत भाव से देखना चाहिए |
हर स्त्री इस तरह की कुंठा में नही जी सकती आज न्यायालय में एक उदाहरण के रूप में स्त्रियों द्वारा किए गए भिन्न भिन्न प्रान्तों के रूप में डिवोर्स के हजारों वाद विवाद लंबित व निपटान किये गए ये सब स्त्री उत्थान के सजग प्रतीक हैं |
यह बात तो समझ में आनी चाहिए महिलाओं के प्रति इस तरह की घटनायें और जिस तरह का आचरण समाज के अंदर पुरुषों के द्वारा सदियों से सालों सालों से होता चला आ रहा हूं उसको अब विराम मिलना ही चाहिए अंत होना ही चाहिए | छोटी चाची के माध्यम से मैं समाज में जिस प्रकार के विचार में लाना चाहता हूं उसको समझना, अगर स्त्री पैदा हुई है एक लड़की पैदा हुई है तो इसका मतलब के यह उसकी सबसे बड़ी भूल है अब आप स्वयं सोचिए कि आप अगर आदमी पैदा हुए हैं इसमें यह आपकी चॉइस है कि आप आदमी पैदा हुए सिर्फ लड़की हो जाने से उसके प्रति अत्याचार , उसका विकास ना होने देना उसके व्यक्तित्व को दबाकर रखना और सबसे बड़ी विडंबना इस बात की कि उसको शादी के दलदल में धकेल देना छोटी उम्र के अंदर इन सब कारणों से स्त्री के विकास मानसिक शारीरिक और आत्मिक भावनात्मक आर्थिक सामाजिक सभी प्रकार के विकास कुंठित हो जाते हैं
समाज में फैले हुए स्त्रियों के प्रति व्यवहार के कारण ऐसे बहुत से उदाहरण है जिसमें स्त्रियों ने ही स्त्रियों के प्रति अत्याचार का आचरण व्यवहार व माहौल बनाया . एक स्त्री दूसरी स्त्री को ईर्ष्या की नजर से देखती हो , इसकी गहराई बहुत है हम बदलेंगे तो समाज बदलेगा |
सरिता नाम की लड़की महज 14 साल की थी उसने ठीक से समाज को देखना अपने आपको पहचानना शुरू भी नहीं किया था उसके लिए उसके पिता रिश्तो की तलाश में लग गए दूर गांव में चौधरी साहब रहते थे उनका बेटा अभी मैं 16 साल का था खेती बाड़ी करता था और युवावस्था में प्रवेश करने के साथ उसके आसपास के लड़कों के साथ दोस्ती के कारण तमाम तरह के शौक पैदा हो गए थे उनके पिता चौधरी साहब को कुछ और समझ नहीं आया उस समय लड़कों को सुधारने का उनको एक प्रकार की सजा देने का एक ही तरीका था अच्छे खानदान की सीधी-सादी मासूम सी लड़की के साथ उसका विवाह कर दो 16 साल के लड़के की अगर आप शादी करेंगे तो उसके लिए 12 से 16 के बीच की कहीं-कहीं तो 10 से 14 के बीच की और कभी-कभी तो उससे भी छोटी लड़कियों की तलाश की जाती है
सरिता के साथ भी ऐसा ही हुआ जब उन्होंने चर्चा शुरू की , उसके पिता ने तो चौधरी साहब को जैसे ही सूचना मिली और वह उस परिवार को बचपन से जानते थे पहली नजर में ही सरिता को देखते हुए उन्होंने उस को पास कर दिया और 5 दिन के अंदर छोटे से आयोजन मगर शालीन आयोजन के अंतर्गत सरिता का विवाह चौधरी साहब के लड़के के साथ कर दिया गया
ऐसे परिवार में लड़कों की लड़कियों की कोई पहचान अपनी तो होती ही नहीं है , ठीक से खड़ा होना भी नहीं सीख पाते ये बच्चे बस गुडडे गुडिया का खेल मात्र | परिवार के भार को संभालने का तो मतलब ही नहीं है सरिता जब उस घर में आई वहां उस घर में 15 सदस्य पहले से थे, सरिता का सोलवा नंबर था सरिता के पति के बड़े भाई बहन उनके जवाई, पत्नियां चाचा चाची सब मिलाकर 16 व्यक्ति , सदस्य में हो गए थे , घर की स्त्रियां सभी प्रकार के कार्य करती थी लेकिन उस के आने से माहौल में कुछ नया परिवर्तन आय उसको परिवार में रहने का ढंग सिखाया गया तौर तरीके बताए गए किस प्रकार का भोजन बनाना है वस्तुओं को किस तरह के संभाल कर रखना है और सब बुजुर्गों का कैसे ध्यान रखना है , पति को कब समय देना, ना चाहते हुए भी यह शादी सरिता की जब हुई उसका मन खिन्नता से भरा हुआ था पिता को उसने बहुत रो रो कर समझाया था मुझे अभी पढ़ाई करनी है मेरी इस चीज में रुचि है मेरी , लेकिन एक ही जवाब था तुम्हारी शादी हो जाएगी अपनी ससुराल में जाकर यह सारी चीजें पूरी करना, लेकिन हमारी परंपरा यही है कि अधिक से अधिक 18 तक होने तक हमारे घर की लड़कियों की हम शादी कर देते हैं | तुम्हारे लिए एक अच्छा रिश्ता आया है हम इस को टाल नहीं सकते इसलिए 14 साल की उम्र में हम तुम्हारी शादी कर रहे , उसके सारे तर्क काट दिए गए , आखिर कितना लड़ती ये छोटी सी बच्ची उन दलीलों के सामने |
पिता बोले जितनी पढ़ाई तुमने करनी थी कर ली , हमें लड़कियों से अपने परिवारों में नौकरी नहीं करानी होती , शिक्षा का मतलब यही है लड़कियां बाहर निकले नौकरी करें अपना स्वतन्त्र जीवन जीयें , लेकिन हम नहीं चाहते कि किसी प्रकार की बदनामी हो , किसी प्रकार का कोई दाग हमारे परिवार पर, एक लड़की के द्वारा न लग जाए बहुत ही संभाल कर रखा है और ख्याल रख अब तक हम तुम्हारे को आठवीं पास करा चुके हैं अगर तुम्हें लगता है कि पढ़ाई करनी है तो अपने ससुराल में माहौल बनाओ अपने ससुर जी और अपने पति से अनुमति लेकर जितनी पढ़ाई करनी है करना |
पिताजी के हुकुम को देखते हुए माताजी को दोषारोपण करते हुए उस घर में आई थी सरिता , ससुराल में आने के बाद उसको प्यार तो बहुत मिला उसके पति ने बाहर झांकना और विशेष क्रियाकलाप सब छोड़ दिए थे उसके आसपास ही रहता था पिताजी के बताए हुए घर के कार्यों में मदद करता था और उसका जीवन एक ढर्रे पर चल पड़ा था , इसका सारा श्रेय सरिता को मिला , परिवार वालों ने सरिता को अपना अधिक से अधिक प्यार देना शुरू किया |
धीरे-धीरे सरिता भी इस चीज की आदी हो गई अन्तर्मन में एक आग सुलगती थी बचपन से वो न बुझी , उसके मायके वालों ने कह रखा था जब तक आप को ना बुलाएं आपको किसी भी अपने प्रयास से मायके की तरफ नहीं आना है पूरा ध्यान आपको अपने ससुराल में ही देना 2 साल के गुजरते गुजरते सरिता के एक लड़का पैदा हो गया उसके लालन-पालन में सरिता का जीवन बीतने लगा शादी के 5 साल हुए तक चर्चा के तीन संतान हो चुकी थी 14 साल की लड़की 5 साल बाद 19 साल की हो चुकी थी उसके 3 बच्चे हो चुके हैं जीवन में और परिवारिक के कार्यों में किस प्रकार समय बीत रहा होगा इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं और स्त्रियाँ तो बखूबी इस प्र्कल्प को समझती ही हैं ,
लेकिन सरिता ऐसी लड़की नहीं थी अपने जीवन की आकांक्षाओं को भूल जाए, तीसरी संतान उसकी 2 साल की हो गई और थोड़ा-थोड़ा समझने लगी परिवार के अन्य लोगों के साथ में उसका सामन्जस्य बैठ गया तो उसने एक रात में अपने पति से अपने मन की बात रखी वह भी 21 साल का हो चुका था , जीवन के अनुभव को झेल चुका था और अपनी पत्नी की इच्छा को सम्मान देता था उसने कहा यह बात मैं पिताजी से करूंगा और उनकी अनुमति मिलने पर तुम्हें आगे की शिक्षा के लिए सहमति मिल जाएगी , ऐसा मेरा मानना है |
और भगवान की दया से हुआ भी यही सरिता ने भगवान का बहुत-बहुत शुक्रिया किया और और पास के कन्या विद्यालय में प्रवेश ले लिया , बहुत ही आसानी से उच्च श्रेणी से उसने अपना इंटर पास किया वह परिवार में इस समय सबसे अधिक पढ़ी हुई लड़की मानी जाने लगी 1 दिन उसके ससुर जी ने उसे बुलाकर पूछा बेटी बस इतना ही या और भी, और आगे पढ़ना है सरिता ने सकूचाआते हुए नजरें नीचे किए हुए बोला पिताजी आप मुझे अपनी बेटी मानते हो इसलिए मैं आज आपसे अपने मन की बात साफ-साफ कहने में हिचकिचाऊंगी नहीं , उसकी आँखे कोरो से भीगी हुइ थी चौधरी साहब ने वात्सल्य से सरिता के सिर पर हाथ रखते हुए बोला हां हां बेटी कोई चिंता नहीं तुम अपने दिल की बात मुझसे साफ-साफ कह सकती हो , सरिता बोली पिताजी, मुझे आई ए एस करना है, 1 मिनट के लिए तो चौधरी साहब सक पका गए , लेकिन वे दुनियादारी देखे हुए व्यक्ति थे उन्होंने दूसरे पल अपनी बात संभालते हुए सरिता को इस बात की इजाजत दे दी साथ ही ताकीद करी के बच्चों की देखभाल व परिवार की देखभाल में और अपने पति की देखभाल में किसी प्रकार की शिकायत नहीं आनी चाहिए ,सरिता ने फटाफट उनके शब्दों को लेते हुए उनके चरण छुए और साथ में ही इस बात के लिए उनको आश्वासन दिया पिताजी मैं अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने में कभी भी कोई चूक नहीं करूंगी, चौधरी साहब बड़े खुश हुए और उन्होंने अपनी तिजोरी से कुछ पैसे निकाल कर उसके हाथ में रखते हुए बोले अपनी शिक्षा के लिए जिस प्रकार के खर्चे तुझे करने हैं या आवश्यक समझे तो उस प्रकार के खर्चे तुम इन पैसों से कर सकती हो और इस विषय में जब भी कोई जरूरत पड़े तो तू मुझे बता सकती है परिवार के किसी सदस्य के लिए या उससे पैसे मांगने की तुझे जरूरत नहीं है समय बीता और भगवत कृपा देखिए सरिता ने आईएएस की परीक्षा और ट्रेनिंग प्रथम स्थान पर रहते हुए पूरी की, 2 साल की ट्रेनिंग के बाद खुशकिस्मती की बात के पास के जिले में ही उसे जिला अधिकारी के रूप में स्थापित किया गया, चौधरी साहब की मूछें अब 4 इंच की बजाय 6 इंच की होकर उच्चतम दिशा में लहरा रही थी | सरिता ने अपनी मेहनत लगन और काबिलियत के बल पर दोनों परिवारों का सम्मान बढ़ाया जिले के अंदर उसके क्रियाकलाप से कार्यों से सुधार के कार्य तेजी से प्रगति करने लगे और प्रशासनिक अवस्था में उसका नाम बहुत ही इज्जत के साथ लिया जाने लगा |
इस कथा का सबसे बड़ा भाव यही है कि, स्त्री को यदि समय अवस्था और सुरक्षा के साथ आप पुष्पित व पल्लवित होने का अवसर देते हैं तो हमेशा आपके सपनों को आपकी इच्छाओं को साथी अपने व्यक्तिगत मानसिक उत्थान को सम्मानित करती है | [[[[ मुझे यहाँ ये लिखते हुए गर्व हो रहा है की जिस साहित्य पीड़िया के माध्यम से मैं ये रचना प्रकाशित करने जा रहा हुँ उसकी संस्थापक भी ऐसी ही एक महिला हैं – जिन्होने अपने व्यक्तित्त्व व सोच के माध्यम से हम सब को इतना बडा वैश्विक मंच दिया]]]
गुजरे सालों की छोटी चाची आज जिलाधिकारी थी बहुत बड़े सरकारी बंगले में रहती थी उसके चारों तरफ सुरक्षाकर्मी व अन्य प्रशासनिक अधिकारियों की भीड़ रहती थी दफ्तर के कार्यों से वह जिले के कार्यों से अब उसे फुर्सत भी कम मिलती थी लेकिन परिवार के किसी व्यक्ति की उसके प्रति कोई शिकायत नहीं थी |
आज उसके बच्चे बड़े-बड़े शिक्षा संस्थानों से शिक्षित हो कर उच्चस्तरीय पदों पर आसीन थे , पूरे परिवार में शिक्षित होने का सूचकांक होने से * सरिता का सपना पूरा होने में जिस जिस ने उसकी सहायता की वह अपने जीवन में अपनी आत्मा से उन सब के प्रति आभारी थी उसकी विनम्रता और उसकी सहानुभूति पूर्व से जिले के निम्न वर्ग के लोगों के अंदर सुरक्षा की भावना व उत्थान को स्थापित हुई थी , यह सब कार्य एक स्त्री ने किए व उसकी पहचान अब आदरणीय *सरिता चौधरी आईएएस के तौर पर थी
छोटी चाची तो मात्र सिमट कर ही परिवार में रह गई थी ….