छोटी कहानी – “पानी और आसमान”
कथा- “पानी और आसमान”
डॉ तबस्सुम जहां।
सुमन ने पानी से भरे गड्ढे में झांक कर देखा। नन्ही मछलियां तैर रही हैं। इससे पहले उसने खाने की प्लेट मे ही मछली देखी थी। बारिश के पानी मे मछली देखने का यह पहला अनुभव था। कौतूहल से उसने पूछा-
“दीदी इस पानी मे मछलियां कहाँ से आईं ।”
“मछलियाँ ? ला देखूं। अरे हाँ, सचमुच ये तो मछलियाँ ही हैं। अरे-अरे थोड़ा दूर हट कर देख नही तो काट लेंगी तुझे। कुसुम ने सुमन पर अपने बड़े होने का रोब झाड़ते हुए कहा।
“‘पर टीवी में तो दिखाते हैं कि मछली समुंदर में होती है और तालाब मे।” उसने मासूमियत से कहा। “ये बादलों से गिरी हैं जैसे ओले गिरते हैं। बादल इन्हें समुंदर से अपनी झोली मे भरकर लाए और यहाँ गिरा दिया। छपाक से। शायद बादलों को किसी मछली ने काट लिया होगा। गुस्से में उन्होंने मछली को यहाँ फैंक दिया।” ग्यारह वर्षीय कुसुम ने अपना गूढ़ ज्ञान छोटी बहन सुमन को दिया।
सुमन जानती है दीदी बहुत समझदार हैं। उन्हें सब पता रहता हैं। हाय! कितनी नन्ही नन्हीं हैं। नन्हे दांतों से बादल को काट खाया इन्होंने। सुमन ने गड्ढे में झांक कर ध्यान से देखा। मछली के साथ जलराशि में उसे आकाश का प्रतिबिंब नज़र आया। नीले आंचल पर सफेद बादलों के फूल टंके हो जैसे। उसने फिर टोका
“दीदी, ये नीचे क्या है आसमान जैसा।”
“ये आसमान है पगली। नीचे वाला। पानी वाला। इसमें मत उतरना वरना डूब जाएगी नीचे।” कुसुम ने यह बात इसलिए कही थी कि कहीं उसकी बहन पानी मे कपड़े गीले न कर ले। पर सुमन पर इसका दूरगामी प्रभाव हुआ।
“अरे! यह तो बहुत गहरा है। बहुत ही गहरा।” कहीं उसका पैर न फिसल जाए। वह वहीं जम कर खड़ी हो जाती है। “कहीं आसमान मे गिर पड़ी तो कैसे निकलेगी। इसका तो तला ही नही है। बादलों में अटक गई तो ठीक है। पापा को दिख तो जाऊंगी। पर पापा निकालेंगे कैसे। इतनी लंबी रस्सी कहाँ से आएगी। रस्सी टूट गयी तब क्या होगा। मैं तो वापस आसमान में छपाक से गिर पडूँगी। सुमन को एक अज्ञात भय सताने लगता है।
“मछलियाँ आसमान में क्यो नही डूब रही दीदी?”
उसने हैरत से पूछा।
“अरे मछली को तैरना आता हैं पागल वो कैसे गिरेंगी।” कुसुम बोली।
“पर नीचे परिंदे भी तो नहींं डूब रहे दीदी। सुमन ने मासूमियत से कहा।
“अरे उन्हें उड़ना आता है वो नही डूबेंगे। जब थक जाएंगे तो नीचे से वापस आ जाएंगे। वापस अपने घोंसले में।” कुसम ने साफ किया।
सुमन जान चुकी थी कि मछलियाँ और परिंदे आसमान में नही गिर सकते। पर वह गिर सकती है। नीचे धंस सकती है। उसे आसमान में नही गिरना है। पानी से बचकर चलना है। उसने देखा सड़क पर जगह-जगह पानी भरा है जिसमे आसमान चमक रहा है। उसे सभी से बचकर चलना है। खुद को गिरने से बचाना है। बकरी और बिल्ली भी तो पानी से बचकर निकल रही हैं। उनको पता है अगर पानी के बीच से गए तो आसमान में गिर पड़ेंगे। देखा सब समझदार हैं। सबको पता है कि कब क्या करना है। कैसे बचकर चलना हैं। आसमान नीचे से सब देखता है। कौन गिरने वाला है। उसने ठान लिया कि वह पानी मे नही जाएगी। चाहे कुछ हो जाए।
कुछ दिन बाद फिर से बारिश हुई। फिर गड्ढे पानी से भरे। इस बार मछलियाँ नही थीं। शायद तैर कर थक चुकी इसलिए आसमान में डूब गईं । कहीं दिखाई भी तो नही दे रहीं। उसने नीचे झाँक कर देखा। तभी एक लड़का दौड़ता आया और तेज़ी से पानी के उस पार निकल गया। छपाक से पानी मे तरंगे कौंध गईं। कुछ देर के लिए तरंगों ने पानी से आसमान का प्रतिबिंब मिटा दिया। सुमन ने देखा लड़का आसमान मे नही गिरा। गिरता कैसे? वह तेज़ी से उसके ऊपर से जो निकल गया था। आसमान कुछ समझ ही नही पाया होगा इतनी देर में। साइकिल वाला भी तो नही डूबा इसमे। सुमन को सब समझ आ गया। अगर आसमान से बचना है तो तेज़ी से निकल जाओ। आसमान कुछ देर के लिए गायब हो जाएगा। वह अंधा हो जाएगा। उसे पता ही न चलेगा कि उसके ऊपर से कौन निकल गया।
सुमन खुश थी। घर जाकर दीदी को बताऊंगी। उसे आसमान को चकमा देना आ गया है। अब वह उसमें नहीं डूबेगी। उसे अब डरने की भी ज़रूरत नही है। दीदी उसे बहुत शाबाशी देंगी। सुमन उठी और भागती हुई पानी के गड्ढे को पार कर गयीं। वह खुश थी। वह डूबी जो नही। उसने आसमान को चकमा देना सीख लिया था।