छोटा-सा परिवार
हुई हमारी शादी,
पत्नी बोली डियर डार्लिंग,
कब तक रहना है इस घर में,
कब तक पिसना है शत् जन में,
रोटी बेलूँ दिन औ रात,
ताने सुनूंँ बातों-बात,
अब न रहना होता हमसे,
कान पके हैं गाली सुनके,
चल दो दिल्ली या पंजाब,
कर लो छोटा मोटा जॉब,
या फिर करेंगे कोई बिजनेस,
बनी रहेगी अपनी फिटनेस,
होगा छोटा-सा परिवार,
मेहनत करेंगे दिन औ रात,
फिर खरीदेंगे एक प्लॉट,
उसमें होगा सुंदर फ्लैट,
फिर लेंगे वैगन-आर,
चलेंगे घूमने नैनीताल,
मैंने सोचा कर दूंँ हांँ,
वरना होगा बुरा हाल,
बसाया छोटा-सा परिवार,
पिसता रहता पूरा साल,
अपना दुखड़ा किसे सुनाऊंँ,
अपनी करनी खुद पछताऊंँ।
मौलिक व स्वरचित
©® श्री रमण
बेगूसराय (बिहार)