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20 May 2024 · 5 min read

*छॉंव की बयार (गजल संग्रह)* *सम्पादक, डॉ मनमोहन शुक्ल व्यथित

छॉंव की बयार (गजल संग्रह) सम्पादक, डॉ मनमोहन शुक्ल व्यथित
अंतरंग प्रकाशन,रामपुर,
प्रथम संस्करण 1987
पृष्ठ संख्या 112,
मूल्य 25 रुपये
🍃🍃🍃🍃🍂🍂
समीक्षक : रवि प्रकाश बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997 615451
🍃🍃🍃🍂🍂
कुछ गजलें, कुछ गजलकार
➖➖➖➖➖➖➖
अरबी और फारसी में गजल के मायने भले ही इश्क-मुहब्बत हों मगर आज की गजल सिर्फ ॲंखियॉं लड़ने या उसके बाद आंसू गिराने तक सिमटी हुई नहीं हैं। जमाने के साथ साथ गजल भी बदली है, गजल के तेवर भी बदले हैं। हो सकता है बहुतों के लिए गजल के मतलब आज भी पायल की झनकार से हों, मगर हिन्दी और उर्दू दोनों में आज इस काव्य विधा को विचार-क्रान्ति के शक्तिशाली औजार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। हर कविता असर करती है, पर गजल तेज, धारदार और देर तक असर करती है। हिन्दी में गजल इसलिए नहीं लिखी गई कि इसके बिना लैला-मजनू का किस्सा नहीं लिखा जा सकता था, गजल इसलिए उर्दू से हिन्दी में आई क्योंकि गीत और दोहे दोनों का अद्भुत सम्मिश्रण गजल में था। अपने गेय गुणों और प्रत्येक शेर की आन्तरिक सम्पूर्ण स्वतंत्र संरचना के कारण गजल, देखते-देखते हिन्दी में छा गई।

हिन्दी गजल की दिशा और दृष्टि का परिचय कराने में समर्थ डॉ० मनमोहन शुक्ल ‘व्यथित’ द्वारा सम्पादित रचना ‘छाँव की बयार’ 1987 में प्रकाशित हुई है। यद्यपि जैसा कि संपादक ने स्वयं स्वीकार किया है, गजलकारों का चयन शिल्प-कौशल की दृष्टि से वैविध्यपूर्ण है। अच्छा होता, यदि गजलकारों के चयन का कोई वैज्ञानिक आधार संपादक ने चुना होता ।

खैर, संकलन में तेरह गजलकारों की गजलें संग्रहीत हैं। जिनमें से दिवाकर राही तो विशुद्ध उर्दू में लिख ही रहे हैं, अन्य गजलकार भी उर्दू मुहावरे के असर से बचे नहीं हैं। (उदाहरणार्थ शशि जी शेख- बिरहमन शब्द का प्रयोग कर रहे हैं (पृष्ठ 33)
संकलन इस बात की ओर स्पष्ट संकेत कर रहा है कि अनेक गजलकारों की मुख्य विषय-वस्तु अभी भी श्रंगार का संयोग या वियोग पक्ष बना हुआ है। इनमें आर०- पी० शर्मा महर्षि, इन्द्रराज मिश्र पंकज, जगदीश सरन सक्सेना वियोगी, ईश्वर शरण सिंहल, डा० मनमोहन शुक्ल व्यथित के नाम मुख्य रूप से गिनाए जा सकते हैं। तो भी राष्ट्र और समाज-जौवन के संघर्ष इनमें से कई गजलकारों की अनेक रचनाओं में कम या अधिक शक्ति से उभर कर आए जरूर हैं।

संग्रह में ‘शराब’ का प्रयोग अनेक धरातलों पर हुआ है। यह रहस्यवादी प्रतीक रूप में भी आया है

पीता रहा हूं हरदम जामे शराब कोई/फिर भी है प्यास बाकी, यह प्यास क्या मिली है” (ईश्वर शरण सिंहल पृष्ठ 103)

अति सामान्य अर्थ में भी शराब है:
डूबने सुरज लगे जब, और दिल भी बैठने / हाथ आ जाए न ऐसे में छलकता जाम क्यों ? (सेवक, पृष्ठ 9)

जीवन की उच्चता के रूप में है:

पी सके न पिला सके, फिर भी नशे में डूब कर/हम दिखाते हैं नशावाजी, कहां का न्याय है ?” (डॉ मनमोहन शुक्ल व्यथित पृष्ठ 106)

शराब बुराई के अर्थ में भी प्रयुक्त है :

कुछ दूर हट के कीजिए, नासेह नसीहतें/बू आ रही है आपके मुंह से शराब की (दिवाकर राही पृष्ठ 26) “

संकलन, मनुष्य के बढ़ते हुए अमानवीय अन्तर्मन पर व्यापक रूप से प्रहार कर रहा है। उदाहरणार्थ, ”

आदमी ही तो था वह जिसे दूर से/ देख कर पास जाने से डरते रहे (सेवक, पृष्ठ 11)

इस दौर के इन्सां को यह नाम दिया जाये/आवाज के जंगल में शमशान की खामोशी (कुॅंअर बेचैन, पृष्ठ 18)।

राम गांब से दूर नगर में मौज-ओ मस्ती करता है/सीता को सौगन्ध दिलाए खत में सातवें फेरे की (प्रोफेसर ओमराज पृष्ठ 51)

गिरगिट-सा रंग आज बदलता है आदमी / क्या रंग बदलने की कुशलता है आदमी (डॉक्टर छोटेलाल शर्मा नागेन्द्र, पृष्ठ 59)

हाथ में पत्थर अधर पर सदाशयता के वचन/दोगलों का सिलसिला-सा, हो गया है आदमी (महेश राही, पृष्ठ 65)

चंद टुकड़ों के लिए नारी को ईंधन कर दिया/आदमी के आवरण में पशु बना है आदमी (श्रीकृष्ण शुक्ल, पृष्ठ 86)

मनुष्य के पतन पर संकलन पर्याप्त रूप से मुखर है तो वहीं धर्म और रूढियों के बंधन पर भी अनेक गजलकारों की लेखनी सशक्त प्रहार कर रही है-

रस्मों रिवाज पाप-पुण्य और कुछ नहीं/हथकड़ियां बेड़ियां हैं महज हाथ-पांव में (सेवक पृष्ठ 14)।

हम को भी सुकूं मिलता, वाइज ! तेरी बातों से/लेकिन बड़ी मुश्किल है, हम सोचने वाले हैं” (दिवाकर राही (पृष्ठ 29),

इस दौरे तरक्की के अन्दाज निराले हैं। जहनों में ॲंधेरे हैं, सड़कों पे उजाले हैं (रघुवीर शरण दिवाकर राही, पृष्ठ 29)।

कहाँ लड़े हैं मन्दिर-मस्जिद/लड़ने वाली नादानी है (कल्याण कुमार जैन शशि, पृष्ठ 33)।

देवालय से आया है या मदिरालय से लौटा है/ ‘राज’ पुजारी के माथे का चंदन बोल नहीं सकता। (प्रोफेसर ओमराज, पृष्ठ 56)

एक-समान बिम्ब प्रयोग संकलन के दो गजलकारों में द्रष्टव्य हैः

जिसे तुम ‘राज’ देकर फूल आए/उसी के हाथ में पत्थर मिलेगा (प्रोफेसर ओमराज, पृष्ठ 54)

और ”

जिन हाथों में फूल दिए थे उनमें पत्थर दीख रहे हैं/ कैसे पत्थर दिल हैं जिनके पास व्यथित अहसास नहीं है” (डॉ मनमोहन शुक्ल व्यथित, पृष्ठ 112)
यहां अन्तर यह है कि प्रोफेसर ओमराज के पास आक्रोश है और डॉ मनमोहन शुक्ल व्यथित के पास पीड़ा है।

संकलन में युद्ध-भय का स्वर भी है :
तोपों के मुंह पर मत बांध / विश्व शान्ति की वन्दन वार (कल्याण कुमार जैन शशि, पृष्ठ 36),

कोई गुलशन उजाड़ने को फिर/एटमी दिल मचल रहा है क्या ? (महर्षि, पृष्ठ 41)

शिशु-गजल संकलन में सिर्फ शशि जी सुना रहे हैं:

बच्चों करो न धक्कम धक्का/स्वर्ग बनाओ चप्पा-चप्पा ।” (कल्याण कुमार जैन शशि पृष्ठ 40)

लोक जीवन में तमाम शुचिता को अक्षुण्ण रखने के बावजूद ईमानदारी का ईनाम सिवाय खाली मुट्ठियों के कुछ नहीं मिल रहा है, ऐसे में सम्पूर्ण व्यवस्था के विरुद्ध पीड़ा-आक्रोश का तेवर बहुत तीव्रता से संकलन में अपने शिल्प-कौशल से उपस्थित हुआ है

रहते हमारे पास तो ये टूटते जरूर/ अच्छा किया जो आपने सपने चुरा लिए (कुॅंअर बेचैन पृष्ठ 17 )

सफाई थी, सचाई थी, पसीने की कमाई थी/हमारे पास ऐसी ही कई कमियां रहीं बाबा ।” (कुॅंअर बेचैन पृष्ठ 20) ।

हमें तारीख का रुख मोड़ना है/हमें तारीख दोहरानी नहीं है (रघुवीर शरण दिवाकर राही, पृष्ठ 25 )

क्यों ॲंधेरे बंद कमरे से निकाला/ये उजाले और भी छलने लगे हैं (डॉक्टर छोटेलाल शर्मा नागेन्द्र पृष्ठ 61)

शाह का फरमान है शाही मुसव्विर के लिए/ कागजों पर खुशनुमा चेहरे उभारे जायेंगे (प्रोफेसर ओमराज पृष्ठ 49)

निर्धन अनाथ बच्चों के दिल टूट जायेंगे/ ये कीमती खिलौने मत रखिए दुकान पर (प्रोफेसर ओमराज पृष्ठ 55

सोचते हैं अब खड़े हो देखकर इन रहनुमाओं को/है मुहाफिज कौन अपना और इनमें कौन कातिल है । (ईश्वर शरण सिहल पृष्ठ 100 )

श्रंगारी गजलें संकलन में अनेक हैं। इस तरह के कुछ उल्लेखनीय शेर इस तरह हैं:

यह भरम लेकर कि यूं जुड़ जायेंगी यादें तेरी/ जोड़ते रहते हैं हम टुकड़े पुराने कांच के (कुॅंअर बेचैन पृष्ठ 29

जाने कहां से आ गई खुशबू गुलाब की/मैं बात कर रहा था किसी के शबाब की (दिवाकर राही पृष्ठ 26),

जब से प्यासी नजर की हिरनी, पनघट-पनघट भटके है/ बौराई एक सोन चिरय्या दरपन पर सर पटके है ( प्रोफेसर ओमराज पृष्ठ 52)

फूलों की गंध की तरह आवारा बन गए/ हम को पुकारता ही रहा प्यार उम्र भर (जगदीश वियोगी, पृष्ठ 90),

शुक्रिया अब रहमतें अपनी उठा ले जाइये/मिल गई जब दर्द की दौलत हमें क्या चाहिए (ईश्वर शरण सिंहल, पृष्ठ 100)

निस्सन्देह संकलन में डा० कुॅंअर वेचैन अपने ओजस्वी मुहावरों और प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति-शैली से अलग स्थान बनाने में समर्थ हैं। प्रो० ओमराज की हर गजल दिल को छूती है। उनके पास बेवाक दृष्टि है, साफ कहते हैं, घुमावदार कहते हैं, सलीके से कहते हैं। निरंकार देव सेवक और रघुवीर शरण दिवाकर राही मूलतः धार्मिक पाखंड पर चोट करने वाले सफल अग्रणी गजलकार सिद्ध हुए हैं। कल्याण कुमार जैन शशि का कविता कहने का अपना अलग अन्दाज है, जो गजल में भी परिलक्षित हो रहा है। डा० छोटे लाल शर्मा नागेन्द्र और ईश्वर शरण सिंहल की अनेक गजलें अत्यन्त उच्च कोटि की हैं ।

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