– छूत ,अछूत ,जाति -धर्म का भेदभाव देश मे वैमनस्यता को जन्म देता है-
-छूत ,अछूत ,जाति -धर्म का भेदभाव देश मे वैमनस्यता को जन्म देता है-
वर्तमान समय मे छुत , अछूत जाति -धर्म का भेदभाव भी एक विषम व विकट समस्या में देश मे,
आजादी के बाद थोड़ी कमी जरूर आई ,
किन्तु आज भी गाँवो में इस प्रथा का प्रचलन विद्यमान है,
गाँवो में आज भी कई लोग इस पीड़ा से जूझ रहे है,
पुरातन समय मे जाति प्रथा का चलन नही था उस समय मे वर्ण व्यवस्था का प्रचलन था वर्ण चार थे ,ब्राह्मण , क्षत्रिय, वैश्य ,शुद्र यह चार वर्ण थे,
इन चारों का अपना -अपना कर्म(कार्य) था ,
कार्य के आधार पर ही उसके वर्ण का निर्धारण होता था ,
जैसे कोई वेदोचारित, पठन -पाठन का कार्य करता था कर्मकांड का कार्य करता था वो पंडित कहलाता था,
पंडित का मुख्य कार्य अन्य वर्णों के बालक -बालिकाओ को अध्ययन करवाने का था,
दूसरा वर्ण व धर्म था क्षत्रिय क्षत्रिय वो होता था जो श्रात धर्म का पालन करता था क्षत्रिय धर्म का कर्तव्य धरती , व धरती पर विधमान प्राणियों की रक्षा करना था, अर्थात जो तलवार से व अपने यूद्धकौशल से धरती पर विधमान प्राणियों की दुसरो से रक्षा करे वो क्षत्रिय कहलाता था,
वैश्य वो होता था जो व्यापार करता था व्यवसाय करता था धन एकत्रित करता था ,
व अंतिम वर्ण शुद्र वो होता था जो इन सबकी सेवा करता था अर्थात सेवक का कार्य जो करता था वो शूद्र कहलाता था तथा उसे हीन दृष्टि से देखा जाता था ,बदलते समय के अनुसार उन्हें छुत , अछूत कहा जाने लगा,
इस प्रकार भारत मे छुत ,अछूत , धर्म जाति ,सम्पदाय के नाम पर भेदभाव से देश में वैमनस्यता फैल रही है,
शिशु जब अपनी माँ के गर्भ से जन्म लेता है तब वो मनुष्य रुप में होता है उसकी जाति मनुष्य ,मानव, (इंसान)के रूप में होता है तब उसे जाति धर्म का कोई भान नही होता है ,
यह बाहर की दुनिया ही उसे अलग -अलग धर्म, सम्पदाय , जाति में विभक्त करती है, यह इस प्रकार के विभाजन की प्रथा तथाकथित पंडितों ने अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए की थी जिसे आगे चलकर सफेदपोश राजनेताओ ने अपना राजनीतिक हथियार बना लिया,
राजनेता इन प्रथाओं व लोगो की धार्मिक भावनाओं का भरपूर फायदा उठाते है और अपने राजनीतिक हथकंडे अपनाते है,
राजनेता आरक्षण व अन्य मुद्दों को लेकर लोगो को बांटकर फुट डालो और राज करो कि नीति का अनुसरण करते है ओर सम्भवत वो सफल भी हो जाते है,
जनता को चाहिए कि इंसान की जन्म से कोई जाति नही होती है और न ही कोई धर्म होता है ,
हमारे लिहाज से सबसे बड़ा धर्म ,मानव धर्म, सबसे बड़ी जाति मानव जाति, सबसे बड़ा सम्पदाय मानव सम्पदाय ,
बस मानवता से बड़ा न तो कोई धर्म है न ही कोई जाति है न कोई सम्पदाय
भरत गहलोत
जालोर राजस्थान
संपर्क सूत्र -7742016184 –