छुपवली उ काहे
छुपवली उ काहे बतावली काहे ना
जे रहल मोहब्बत जतावली काहे ना
अँखिया से अँखिया मिलावत त रहली
इशारा में हमके बोलावत त रहली
पर उनकर इशारा बुझाइल ना हमरा
लजइली उ काहे समझवली काहे ना।
जे रहल मोहब्बत…………………….
उ खिड़की से झांकल उ छत प से ताकल
देखी हमरा के उनकर शरमा के भागल
जमाना के डरे हम आगे ना अइनी
डेरइली उ काहे बोलवली काहे ना।
जे रहल मोहब्बत………………….
©-sandeep raaz anand