Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Apr 2018 · 3 min read

“छिपकली दीवार की”

मकान के दूसरे मंजिल का कमरा जो बिलकुल किनारे पड़ता है ,कमरे की एक खिड़की बाहर की तरफ खुलती है | जिससे सड़क पर आने जाने वालों की सारी हलचल का पता चलता रहता है | रोज की तरह आज भी मै दोपहर के समय स्कूल से घर लौटा तो सीधे अपने कमरे में चला गया | सब कुछ सामान्य था | जैसे ही मैं आराम करने के लिए बिस्तर पर लेटा तभी मेरी नजर सामने वाली दीवार पर लगी घड़ी की तरफ़ गई | मैंने देखा एक छिपकली बड़ी शांत अवस्था में दीवार से चिपकी हुई है |वैसे तो कमरे में कई बार छिपकलियों का आना जाना रहा लेकिन हर बार वह मेरे द्वारा बाहर भगा दी गईं,पर मैंने इस बार सोंचा की प्रकृति ने जिस प्रकार हमें कहीं भी रहने,अपना घर बनाने की स्वतंत्रता प्रदान की है —-यह भी प्रकृति का ही एक प्राणी है अगर हमें कोई हमारे घर से बाहर निकाल दे तो कितनी तकलीफ होगी | यही सोंचकर मैंने आज उसे अपने कमरे में रहने दिया | वह बड़ी शांति पूर्वक अपनी जगह पर बैठकर किसी शिकार का इंतजार करने लगी ——–धीरे-धीरे शाम हो गई और मै भी अपने किसी काम से बाहर चला गया ,रात को देर से वापस आने के कारण जल्दी ही सो गया | सुबह सोकर उठा तो देखा छिपकली पूरे हक के साथ कमरे की दूसरी दीवार पर विचरण कर रही है |धीरे-धीरे समय बीतता गया और उसने दीवार पर लगी घड़ी के पीछे वाले हिस्से को अपना घर बना लिया |अब वह कहीं दूसरी दीवार पर भी नहीं जाती |वहीँ बैठकर जो भी शिकार मिल जाता उसी से अपना पेट भर लेती |मेरे द्वारा उसकी हर एक गतिविधि पर ध्यान रखते-रखते न जाने कब वह मेरे जीवन का एक हिस्सा बन गई |अब तो कमरे में दाखिल होते ही सबसे पहली नजर उसी दीवार घड़ी पर जाती जिसके पीछे वह बैठती थी |अगर कुछ पल तक वह दिखाई न दी तो मेरी आँखें बेचैनी से चारों तरफ उसे ढूँढने लगतीं|समय के साथ अब वह मेरी दोस्त बन चुकी थी |—————-एक दिन मै अपने स्कूल से वापस लौटकर जैसे ही कमरे में दाखिल हुआ ,मैंने सबसे पहले दीवार की तरफ़ देखा लेकिन आज वह मुझे दिखाई नहीं दी |मैंने सोंचा शायद कहीं शिकार की तलाश में इधर उधर भटक गई होगी सो अपने बिस्तर पर लेटकर सो गया |सुबह प्रतिदिन की दिनचर्या के हिसाब से स्कूल चला गया |जब स्कूल से वापस लौटकर आया और दीवार घडी के पास गया तो देखा छिपकली अब भी वहाँ नहीं थी |
अब तो मुझे चिंता होने लगी |सब जगह खोज लिया लेकिन वह नही मिली |मन व्याकुल हो रहा था ,ऐसा लग रहा था मानो कोई सच्चा साथी बिछुड़ गया हो |मैंने सम्भावित सभी जगह उसे खोज लिया लेकिन कुछ भी पता नहीं चला |निरास होकर मैं अपने बिस्तर पर बैठ गया |अभी उसी के बारे में ही सोंच रहा था कि मेरी नजर कमरे के दरवाजे पर पड़ी ,दरवाजे और दीवार के बीच बहुत थोड़ी सी जगह थी |मुझे कुछ दिखाई पड़ा,अनिष्ट की आशंका से मेरा मन भयभीत हो गया |दौड़कर दरवाजे के पास गया तो देखा शायद किसी शिकार की वजह से वह छिपकली दरवाजे के पास आई होगी और किसी के द्वारा दरवाजा बंद कर देने से संकरी जगह में दबकर उसकी मृत्यु हो गई |मन में एक जोर का झटका लगा एक छोटे से प्राणी के प्रति इतना लगाव आज महसूस किया |कुछ क्षण के लिए तो स्तब्ध रहा गया समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें एक छोटे से मूक प्राणी से बिछड़ने पर यह स्थिति होती है, तो न जाने किस तरह से इंसान-इंसान की हिंसा कर देता है जो कि भावनाओं का स्रोत है ——–शायद उसकी यही नियति थी लेकिन वह मेरे मन मष्तिष्क पर गहरा घाव और प्रभाव छोड़ गई |

अमित मिश्र
जवाहर नवोदय विद्यालय
नोन्ग्स्टोइन

Language: Hindi
1 Like · 530 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
"बेटी और बेटा"
Ekta chitrangini
मेरी कलम से…
मेरी कलम से…
Anand Kumar
मैं जी रहा हूँ जिंदगी, ऐ वतन तेरे लिए
मैं जी रहा हूँ जिंदगी, ऐ वतन तेरे लिए
gurudeenverma198
सर्दियों का मौसम - खुशगवार नहीं है
सर्दियों का मौसम - खुशगवार नहीं है
Atul "Krishn"
आप और हम
आप और हम
Neeraj Agarwal
"ऐ मुसाफिर"
Dr. Kishan tandon kranti
तेरी आवाज़ क्यूं नम हो गई
तेरी आवाज़ क्यूं नम हो गई
Surinder blackpen
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
*मजदूर*
*मजदूर*
Shashi kala vyas
आज वही दिन आया है
आज वही दिन आया है
डिजेन्द्र कुर्रे
" सब किमे बदलग्या "
Dr Meenu Poonia
ग़ज़ल
ग़ज़ल
लोकेश शर्मा 'अवस्थी'
राम भजन
राम भजन
आर.एस. 'प्रीतम'
कैसा विकास और किसका विकास !
कैसा विकास और किसका विकास !
ओनिका सेतिया 'अनु '
उसे तो आता है
उसे तो आता है
Manju sagar
सुबह भी तुम, शाम भी तुम
सुबह भी तुम, शाम भी तुम
Writer_ermkumar
सत्यबोध
सत्यबोध
Bodhisatva kastooriya
#तेवरी / #देसी_ग़ज़ल
#तेवरी / #देसी_ग़ज़ल
*Author प्रणय प्रभात*
होली और रंग
होली और रंग
Arti Bhadauria
"संघर्ष "
Yogendra Chaturwedi
ईश्वर, कौआ और आदमी के कान
ईश्वर, कौआ और आदमी के कान
Dr MusafiR BaithA
ग़ज़ल सगीर
ग़ज़ल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
ओढ़े  के  भा  पहिने  के, तनिका ना सहूर बा।
ओढ़े के भा पहिने के, तनिका ना सहूर बा।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
औरों के धुन से क्या मतलब कोई किसी की नहीं सुनता है !
औरों के धुन से क्या मतलब कोई किसी की नहीं सुनता है !
DrLakshman Jha Parimal
पत्र गया जीमेल से,
पत्र गया जीमेल से,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
मेरी माँ
मेरी माँ
Pooja Singh
*नारी तुम गृह स्वामिनी, तुम जीवन-आधार (कुंडलिया)*
*नारी तुम गृह स्वामिनी, तुम जीवन-आधार (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
चला आया घुमड़ सावन, नहीं आए मगर साजन।
चला आया घुमड़ सावन, नहीं आए मगर साजन।
डॉ.सीमा अग्रवाल
प्यार किया हो जिसने, पाने की चाह वह नहीं रखते।
प्यार किया हो जिसने, पाने की चाह वह नहीं रखते।
Yogi Yogendra Sharma : Motivational Speaker
Loading...