छाया कैसा है यह खुमार ——– गीत
कुछ परंपराएं छूटी,जिंदगी से जिंदगी रूठी।
सभ्यता टंगी है खूंटी,मानवता लगती झूंठी।
छाया कैसा है यह खुमार,हर कोई हुआ बीमार।।
सम्मान सलीका भूले,मुंह सबके फूले फूले।
कोई किसी की ना सुनते,राह मनमानी ही चुनते।
इक दूजे को समझे भार, कहां बचा वह सच्चा प्यार।
छाया कैसा है यह खुमार —————————–।
मात पिता भी डरते,बेटे बेटी मन की करते।
गुरु है सहमा सहमा,शिष्य से कुछ न कहना।।
बही यह कैसी धार,नैय्या डूब रही मझधार।।
छाया कैसा है यह खुमार हर कोई हुआ बीमार।।
***************निरंतर***************
राजेश व्यास “अनुनय”