छाता
राधा आफिस से बाहर निकली तो देखा हल्की बारिश हो रही थी। आफिस से थोड़ी दूरी पर मेडिकल स्टोर से उसे कुछ दवा खरीदनी थी। घर में बूढ़ी दादी जो उसका एक मात्र सहारा थी, ने बीमारी के कारण चारपाई पकड़ ली थी। राधा के माँ बाप का बचपन में ही एक सड़क दुर्घटना में देहांत हो चुका था। दादी ने ही राधा को पाल पोस कर इस लायक बनाया था कि वो एक मल्टी नेशनल कंपनी में कार्यरत थी। थोड़ा तेजी से चलते हुए वो स्टोर तक पहुंची। भीगे हाथों से दवा का पर्चा निकाल कर काउंटर पर खड़े सेल्समेन से तीन दिन की दवा देने को कहकर वो गीले बालों को झाड़ने लगी। इसी बीच दुकानदार ने दवा का लिफाफा व पर्चा राधा को थमा दिया। राधा दवा का भुगतान करके जैसे ही बाहर निकली तो उसने देखा बारिश काफी तेज हो चुकी थी। राधा का घर यहां से तीन-चार किलोमीटर की दूरी पर था। घर जाने के लिए वो रिक्शा की प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन कोई भी रिक्शा खाली नही आ रहा था। तभी पास के स्टोर से एक युवक हाथ में छाता लिए बाहर निकला। एक बार को बारिश देख कर वो ठिठका और फिर चंद कदम की दूरी पर खड़ी गाड़ी की और बढ़ गया। अचानक ही राधा को याद आया कि एक छाता तो उसके बैग में भी है। वो भीतर ही भीतर मुस्कराई और बैग से छाता निकाल कर धीमे पांव से अगले चौक तक चल दी। इस चौक से अक्सर रिक्शा मिल ही जाता था। राधा के चेहरे पर नादान मुस्कुराहट अभी भी मौजूद थी।
वीर कुमार जैन
27 जून 2021