‘ छाँव ‘
अरे सुनो…तुम बरगद के नीचे से इन पौधों को क्यों हटा रहे हो बेचारे मर जायेगें ।
नाही साहेब इनको जिलाने की खातिर खुल्ले में रोपेगें…लेकिन वहाँ ये धूप में मर जायेगें…मर तो ई बेचारे ईहांं रहे है बरगद की छाँव मा ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 10/06/2021 )