छह ऋतु, बारह मास हैं, ग्रीष्म-शरद-बरसात
छह ऋतु, बारह मास हैं, ग्रीष्म-शरद-बरसात
स्वच्छ रहे पर्यावरण, सुबह-शाम, दिन-रात
हरियाली के गीत मैं, गाता आठों याम
कोटि-कोटि पर्यावरण, तुमको करूँ प्रणाम
खूब संपदा कुदरती, आँखों से तू तोल
कह रही सृष्टि चीखकर, वसुंधरा अनमोल
मन प्रसन्नचित हो गया, देख हरा उद्यान
फूल खिले हैं चार सू, बढ़ा रहे हैं शान
मानव मत खिलवाड़ कर, कुदरत है अनमोल
चुका न पायेगा कभी, कुदरत का तू मोल
—महावीर उत्तरांचली