छलावा
हमें एहसास रिश्तों का है,
छलावा हम नहीं करते।
बुरे सबकी निगाहों में हैं,
दिखावा हम नहीं करते।
जिसको अपना समझा है,
उसे अपना ही समझा है।
किसी को अपना बनाकर के,
पराया हम नहीं करते।
हमें एहसास रिश्तों का है,
छलावा हम नहीं करते।
दिखावा आ गया करना,
हुनर सिर चढ़ के बोलेगा।
कला अद्भुत है ये ऐसी,
की बातें गढ़ के बोलेगा।
ये तुम्हारा मामला है,
के पछतावा तुम नहीं करते।
हमें एहसास रिश्तों का है,
छलावा हम नहीं करते।
तुम बेजान सा प्रेम लिए,
सबको पुचकारा करते हो।
ये जान लो के तुम हरदम,
रिश्तों से छुटकारा करते हो।
खुद को जोड़कर खुदसे,
क्यों दिखावा कम नहीं करते।
हमें एहसास रिश्तों का है,
छलावा हम नहीं करते।
क्या तुम्हारे इस अंतस में,
कोई है सच्चा भाव नहीं।
किस दुनियाँ में जीते हो तुम,
के किसी से सच्चा लगाव नहीं।
बात है पते की यह,
बस ये जान लो तुम भी।
ये जो दिखावे के रिश्ते हैं,
सताया कम नहीं करते।
हमें एहसास रिश्तों का है,
छलावा हम नहीं करते।
बुरे सबकी निगाहों में हैं,
दिखावा हम नहीं करते।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी