छम-छम वर्षा
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कुण्डलिया
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गहरी मीठी नींद में, स्वप्न देखिए खूब।
और देखना सहज ही, मिट जाएगी ऊब।
मिट जाएगी ऊब, प्रफुल्लित होगा तन-मन।
लिए मधुर मुस्कान, खूब निखरेगा जीवन।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, जिन्दगी रहे न ठहरी।
करें सभी से स्नेह, भावनाएं हो गहरी।
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छम-छम वर्षा हो रही, सावन में हर ओर।
प्यास धरा की बुझ रही, तृप्त हुआ हर छोर।
तृप्त हुआ हर छोर, नदी नाले बह आए।
वन उपवन के रंग, सभी का मन हर्षाए।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, छोड़ कर जीवन के ग़म।
खूब मनाओ मौज, हो रहा बारिश छम-छम।
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खूब पसीना पड़ रहा, गर्मी है पुरजोर।
ऐसे में जाएं कहां, मुश्किल है हर ओर।
मुश्किल है हर ओर, बहुत व्याकुल होता मन।
ठंडी शीतल छांव, ढूंढता देखो हर जन।
कहते वैद्य सुरेन्द्र, खूब पानी है पीना।
गटकें शीतल पेय, पड़े जब खूब पसीना।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ३०/०६/२०२४