छप्पय छंद
छप्पय छंद
निर्धन बेघरबार, सड़क पर भूखा सोता।
खाता है दुत्कार, क्षुधा से पीड़ित रोता।।
बेबस यह लाचार, शीत से तन ठिठुराया।
दूजा कंबल देख, दूर से मन ललचाया।।
उर पीड़ा किससे कहे, यहाँ सुनेगा कौन है।
निष्ठुर इस संसार में, ईश साधता मौन है।।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)