छठ पूजा-गोपाष्टमी
शुक्ल पक्ष कार्तिक मने, षष्ठी का त्योहार।
सूरज का पूजन करें, सुख-वैभव आधार।।
परंपरागत रीति से, होता छठ का पर्व।
मानवता की नींव रख, करते सब जन गर्व।।
छठ पूजन मिलजुल करें, खुश होकर नर -नार।
शुद्ध आचरण ध्यान रख, तजते मनोविकार।।
सूरज उगते डूबते, होता अर्ध्य विधान।
निर्जल रह कर व्रत करें, कठिन साधना जान।।
खरना का दिन दूसरा, देते लोग प्रसाद।
मनोकामना पूर्ण हो, रहे न शेष विषाद।।
छठ पर सीता, द्रोपदी, रखती थीं उपवास।
श्रद्धा अंतस में लिए, पूर्ण हुई हर आस।।
हिंदू-मुस्लिम जन सभी, देते इसको मान।
आपस में सद्भाव रख, चाहें सब कल्याण।।
गौपूजन गोपाष्टमी, धेनु चराते गोप।
पग छूकर आशीष पा, मिटते सकल प्रकोप।।
सींग बाँध गौ चूनड़ी, करें गोप शृंगार।
हरा चना, गुड़ गौ खिला, पूजें बारंबार।।
गोपों को जन तिलक कर, देते कपड़े दान।
गौ-गौपाला खुश रहें, रखते इसका ध्यान।।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)