छठ गीत
उगीं ना पुरुब से सुरुज देव लेईं ना अरघ मोर हे
गंगा घटवा लगल भारी भीर भइल भिनुसार भोर हे
मनवाँ में सरधा अपार बा रउरे अधार बा हे
अब देईं ना हे देवता असीस नयनवाँ भरल लोर हे
महकेले बेदिया सुहावन अति मनभावन हे
राउर महिमा हवे बड़ भारी मचल चारू ओर सोर हे
जगमग जरेला दियनवाँ करेला उजियार मन हे
जन-जन में जगाई पिरितिया जुड़े नेहिया के डोर हे
गितिया राउर हम गाइब जग के सुनाईब हे
जवने अँगना ‘असीम’ अन्हार करा दीं उहाँ अँजोर हे
✍🏻 शैलेन्द्र ‘असीम’
पाण्डेय निवास
रोहुआ मछरगावां, कुशीनगर