छंद
गुरू की कृपा से–
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आकर गुणों का हो
प्रभाकर सा तप्त किन्तु
ऐसे अभिमानी के
न कीर्ति गान गायेंगे
सरस मनों के चरणों के
चारु किंकर हो
श्रृद्धा से विनत
नत मस्तक झुकायेंगे
नम्रता विनम्रता है
यद्यपि हमारा ध्येय
अहं घनों पर हम
वात बन छायेंगे
एक दिन जायेंगे
वितान तन प्रतिभा के
गुरू की कृपा से
चार चाँद लग जायेंगे
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~जयराम जय
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