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दिनांक-9-6-2023
[09/06, 8:04 AM] Promod Mishra Just Baldevgarh: विधा ,,चौपाई छंद ,विषय,, कुंवर हरदौल ,,
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नगर ओरछा थी रजधानी , राजा वीर सिंह जी ज्ञानी ।।
आठ भाइ हरदौल कहाए , मातु गुमान कुँवर ने जाए ।।
भ्राता नृपति जुझार कहाए , नगर ओरछा जन सुख पाए ।।
कुँवर हिमांचल बहू बन आइ ,वामांगिनी हरदौल कहाइ।।
राज काज चलता शुभ योगा ,आए संदेही कुछ लोगा।।
मिथ्या बात जुझार सुनावे , आग बबूला नृप हो जावे ।।
चंपावत जुझार की दारा , करती लाला प्रेम अपारा ।।
नृप जुझार नै वचन सुनाया ,निज सहचरी दोषी ठहराया ।।
विष भोजन रानी बनवाए , धर्म हेतु लाला सब पाए ।।
सती सत्य जानी पहचानी, लिखी”प्रमोद”काल की बानी ।।
दोहा,, लोक देवता हो गए ,वह लाला हरदौल ।
जय-जय करें “प्रमोद” सब , मिलै न ऐसी तौल ।।
भूपति हैं रघुवंश मणि , नगर ओरछा धाम ।
भूल नाथ कीजै क्षमा , करें “प्रमोद”प्रणाम ।।
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,, प्रमोद मिश्रा बल्देवगढ़,,
,, स्वरचित मौलिक ,,
[09/06, 9:00 AM] Ram Sevak Pathak Hari Kinker Lalitpur: शुक्रवार। विधा -चौपाई।
विषय -गुरुदेव की आरती
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आरति करो पूज्य गुरुवर की।
ज्ञान प्रदाता करुणाकर की ।।
गुरुवर जिस पर कृपा सु करदें।
अपना कर उसके सिर धर दें।।
बिन गुरु ज्ञान न पाये कोई।
भव सागर से तरण न होई।।
गुरु ही प्रभु की राह दिखाते।
वह ही प्रभु से हमें मिलाते ।।
निशि दिन कृपा होइ हरि हर की।
आरति करो पूज्य गुरुवर की।।
नारद ने गुरु मंत्र सिखाया।
ध्रुब ने हरि का दर्शन पाया।।
जब अनुकम्पा गुरुवर करते।
माया मोह तभी प्रभु हरते।।
जग के काम सरल हो जाते।
हिय में मोद सदा हम पाते।।
गुरु की महिमा को कह पाया।
राम कृष्ण ने शीश झुकाया ।।
गुरु को प्रभु के सम ही जानो।
मन में तनिक न संशय मानो।।
यह सलाह शुभ”हरिकिंकर”की।
आरति करो पूज्य गुरुवर की।।
मौलिक, स्वरचित
“हरिकिशन कर”भारतश्री, छन्दाचार्य
[09/06, 1:48 PM] Amar Singh Rai Nowgang: कुंडलियाँ, विषय: भारत, 09/06/2023
भारत देश महान है, यह वीरों की खान।
खूबी सबसे है अलग, जानें सकल जहान।
जानें सकल जहान, विविध हैं भाषा- बोली।
हिल- मिल सब त्यौहार, मनाते ईद व होली।
कहे अमर कवि राय,प्रगति पथ बढ़े अनारत।
संस्कृति शिष्टाचार, निभाता रिश्ते भारत।।
सारी दुनिया मानती, भारत को सिरमौर।
इसके जैसा है नहीं, कोई दूजा और।
कोई दूजा और, अजब हैं मान्यताएँ।
गोमल पुजें गणेश, घास तरु और शिलाएँ।
सात जन्म तक साथ,रहें मिलकर नर-नारी।
खूबी कई अनेक, मानती दुनिया सारी।।
मौलिक
अमर सिंह राय
[09/06, 2:24 PM] vidhya sharan khare Sarser Noganw: सुखदाई हरि नाम है, वेइ सँभालें काम।
सबकी उनको है खबर, ऐसे मेरे राम।
ऐसे मेरे राम, जानते सबके मन की।
सुनते करुण पुकार, सदा ही वे निर्धन की।
सबके मुख में राम, भजन कर मेरे भाई।
थोड़ा समय निकाल, राम भज ले सुखदाई।
[09/06, 2:25 PM] vidhya sharan khare Sarser Noganw: कलयुग के इस काल में, सबसे सरल उपाय।
सिर्फ नाम सुमिरन करे, नर भव से तर जाय।
नर भव से तर जाय, जपै श्री राम निरन्तर।
दैहिक दैविक ताप, सभी होते छू मंतर।
भज लो सीता राम, रहो तुम जीते जुग-जुग।
जो ईश्वर आशक्त, बिगाड़े कुछ मत कलयुग।
वी,एस खरे
सरसेड़।
[09/06, 3:01 PM] Prabhudayal Shrivastava, Tikamgarh: कुण्डलिया स्वार्थ
डूबे हैं सब स्वार्थ में, मानवता लाचार ।
इस पर कोई क्यों नहीं, करता कभी विचार।।
करता कभी विचार, स्वार्थ में अंधा हो कर।
क्या कुछ आया हाथ, बहुत से अपने खो कर।।
कहते हैं पीयूष , नहीं अच्छे मंसूबे।
लेते रहते घूस , स्वार्थ में रहते डूबे।।
प्रभु दयाल श्रीवास्तव पीयूष टीकमगढ़
[09/06, 3:59 PM] Anjani Kumar Chaturvedi Niwari: रोला छंद
दिनांक- 09-6- 2023
कर ले तू तत्काल, तुझे जो कुछ है करना।
जाना है सब छूट, यही चिंतन है करना।
जैसा बोया बीज, वही दामन है भरना।
कर ले प्रभु का ध्यान,अगर तुझको है तरना।
स्वरचित एवं मौलिक
अंजनी कुमार चतुर्वेदी श्रीकांत निवाड़ी
[09/06, 5:07 PM] Shobha Ram Dandi 2: शोभारामदाँगी नंदनवारा जिला टीकमगढ़ (मप्र)09/06/023
बिषय–छंद दिवस ,चौपाई/कुण्डलिया ,हिन्दी
/बुंदेली
०१= “कुण्डलिया छंद”
ब्याव
ब्याव काज जब होत है ,मंगल गान सुनात ।
घर में शुभ सब होत है,घरै लक्छमी आत ।।
घरै लक्छमी आत,सुहागन गावैं गारीं ।
नर-नारी खुश होय ,अमंगल भगै दुवारी ।।
कह “दाँगी” कवि आज, मन खर्चा खूब कराव ।
करै राम अनुरूप ,हौंय सबइके जग ब्याव ।।
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी
०२=कुण्डलिया छंद
गर्मी
गरम हवा चलने लगी ,लू लगरइ बेजोड़ ।
सहन नहीं कर पा रहे, तन मन देत मरोड़ ।।
तन-मन देत मरोड़ ,बदन खौं चैन परैनइँ ।
धरती अग्नि उगलत,बर्सै गगन सें ऐंनइँ ।।
कहैं कवी हर वार ,”इन्दु” जानें नहीं मरम ।
तपत माह मइ-जून ,चलत कसकैं हवा गरम ।।
मौलिक रचना
शोभारामदाँगी
[09/06, 5:44 PM] Sr Saral Sir: कुण्डलिया विषय – कबीर
छाया चारों ओर था, अंधकार का जाल।
डेरा था पाखण्ड का , जीवन था बदहाल।।
ज़ीवन था बदहाल,कठिन था जीवन जीना।
दे कबीर ललकार, किया था चौड़ा सीना।।
धन्य हुए नर- नार, ज्ञान सदगुरु का पाया।
मिटा घोर पाखण्ड,आज सदियों का छाया।।
एस आर सरल
टीकमगढ़
[09/06, 8:04 PM] Gokul Prasad Yadav Budera: 🌺बुन्देली कुण्डलियाँ 🌺
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(1)
बसकारौ सामूँ खड़ो, छौनर डरी तमाम।
खपरा खाड़ी जोर कें, करवा लो जौ काम।
करवा लो जौ काम, पिया तुम काय चिमानें।
डरो न अब लौ खाद, बखर-हर भी सुदरानें।
सबइ असाड़ी काम, समय सें करवा डारौ।
गरमी भइ है तेज, ठीक हौनें बसकारौ।
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(2)
दारू पीबे कौ चला, चल गव भौतइ भौत।
कई जनें भैरा गये, कइयन की भइ मौत।
कइयन की भइ मौत, घरै रो रइ घरवारी।
बिक गइ सबइ जमीन,बिके घर-दोर अटारी।
समझा हारे खूब, टपरिया बची गुजारू।
जीवन है अनमोल, छोड़ दो भइया दारू।
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(3)
तातौ बासौ जो मिलै सब खा लेत गरीब।
दीनबंधु नें दीन कौ, ऐसइ लिखो नसीब।
ऐसइ लिखो नसीब ,पियत घैला कौ पानी।
करत रहत दिन-रात,मजूरी और किसानी।
रूखीं रोटीं चार, इनइं सें उनकौ नातौ।
‘गोकुल’बे सब खात , मिलै जो बासौ-तातौ।
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✍️गोकुल प्रसाद यादव, नन्हींटेहरी (बुड़ेरा)