छंद त्राता .जमाना कैसा आया
बैरी अपने हैं, जमाना कैसा आया ।
देखो अपनों से,सही में धोखा खाया।
देखूँ जिसको भी, रखा पैसे से नाता।
गैरों पर सोचो, भरोसा कैसे आता ।।
कैसी मनमानी,…..सुना तो रोना आया ।
पाला जिसको भी,उसी को आगे पाया ।
लूटें घर वे ही, नजारा ऐसा देखा ।
देती दिन में ही,दिखाई काली रेखा ।।
कैसे समझाऊँ,बताऊँ सारी बातें ।
काटी बिन तेरे ,कहूँ मैं कैसे रातें ।
टोके अब सासू, पता है होली आई ।
है साजन तेरा, कहाँ पे पूछे ताई ।।
रमेश शर्मा.