छंद:-अनंगशेखर(वर्णिक)
क्षुधा हमें दिखा रही लचारगी व खिन्नता,
परन्तु आज देश में यही दशा गरीब की।
समग्र शूल वक्ष में व चक्षु भाव शुन्य से,
निरीह रंक वेष में यही दशा गरीब की।
विकल्प हीन पंथ है सुयोग चक्षु से परे,
विकार ही विशेष में यहीं दशा गरीब की।
निदान हीन हो चला विचार से परे पड़ा,
सदा रहा स्वदेश में यही दशा गरीब की।।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’