छंदों में मात्राओं का खेल
यदि आप दोहा और चौपाई लिखने में अपनी कलम परिपक्व कर लेते है / या है , तब आप मात्राएं घटा बढ़ाकर अनेक मात्रिक छंद लिख सकते है ,
मैं रोटी विषय लेकर कुछ विविध छंदो में ~रोटी लिख रहा हूँ
दोहा छंद में ~(13 – 11)
रोटी ऐसी चीज है , जिसकी गिनो न जात
भूख और यह पेट को , है पूरी सौगात ||
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यदि दोहे के विषम चरण में दो मात्राएं बढ़ जाए तब दोही बन जाती है
दोही ( 15- 11)
अब रोटी ऐसी जानिए , जिसकी रहे न जात
भूख और यह तन पेट को , है पूरी सौगात ||
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सोरठा छंद में ~ (11 – 13 विषम चरण तुकांत )
यदि दोहा को उल्टा लिख दिया जाए व तुकांत विषम चरण में मिला दी जाए ,तब सोरठा छंद बन जाता है
इसकी गिनो न जात , रोटी ऐसी चीज है |
है पूरी सौगात , भूख और यह पेट को ||
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साथी छंद मे- (12 – 11)यदि दोहे के विषम चरण में एक मात्रा कम हो जाए व यति दो दीर्घ हो जाए तब साथी छंद बन जाता है
रोटी कभी न माने , जात पात का फेर |
पेट जहाँ है भूखा , करे अधिक न देर ||
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मुक्तामणि छंद में -(13 – 12) यदि दोहे के सम चरण में ग्यारह की जगह 12 मात्रा हो जाए व पदांत दो दीर्घ हो जाए , तब मुक्तामणि छंद हो जाता है
जात न पूंछे रोटियाँ , इसको समझो ज्ञानी |
जिसके घर में पक उठे ,चमके दाना पानी ||
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उल्लाला छंद में -(13 – 13 ) (चारो दोहे के विषम चरण )
यदि दोहे के सम चरण में ग्यारह की जगह तेरह मात्राएं हो जाए ,व पदांत दीर्घ हो जाए तो उल्लाला छंद हो जाता है
सब रोटी को घूमते , रखे सभी यह चाह है |
रोटी भरती पेट है , रोटी नहीं गुनाह है ||
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रोला छंद ( 11-13 )
मापनी- दोहा का सम चरण +3244 या 3424
यदि दोहे को उल्टा करके , सम चरण को मापनी से लिखा जाए तो रोला बन जाता है
रोटी का हम गान , लिखें हम रोटी खाकर |
बल का देती दान ,पेट में रोटी जाकर ||
करते हम सम्मान , नहीं है रोटी छोटी |
अपनी कहें दुकान, सभी जन रोजी रोटी ||
रोला में + उल्लाला करने पर छप्पय छंद बन जाता है
रोटी तन का जानिए , अंतरमन शृंगार है |
रोटी जिस घर फूलती , रहती सदा वहार है ||
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बरबै छंद में 12 – 7
रोटी तेरी महिमा , करें प्रकाश |
भूखा पाकर ऊपर , भरे हुलाश ||
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अहीर छंद ( 11 +11 ) चरणांत जगण ही करना होता है
रोटी मिले सुभाष | आता हृदय प्रकाश ||
रोटी बिन सब दीन | निज मुख रहे मलीन ||
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चौपाई छंद में ~( 16 – 16)
रोटी तन का जीवन जानो |
रोटी की सब. महिमा मानो ||
रोटी बिन समझो सब सूखा |
बिन रोटी यह तन है भूखा ||
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सरसी छंद में ~(16- 11)
चौपाई चरण + दोहा का सम चरण
रोटी को जिसने पहचाना , उसको भी भगवान |
कभी न भूखा सोने देते, रखते उसका ध्यान ||
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ताटंक/लावणी छंद में ~,(मुक्तक)16- 14
चौपाई चरण + चौपाई चरण में दो मात्रा कम करके 14 मात्रा या (मानव छंद )
रोटी की महिमा का हमने , इतना तो वस जाना है |
इसके बिन सब सूना सा है , पूर्ण तरह से माना है |
रोटी की जब चाह जगे तब , इसको देना होती है ~
पड़े भूख पर भारी रोटी , इसका ऐसा दाना है |
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पदावली -आधार छंद चौकड़िया छंद
बात न समझो छोटी |
भूख मिटाती जाती रोटी , पतली हो या मोटी ||
रोटी पाकर जो मदमाता , करे बात को खोटी |
कहे गुणीजन उसकी कटती , बीच बजरिया चोटी ||
निराकार वह परम पिता है , हम सब उसकी गोटी |
कहत सुभाषा उसकी रोटी , हर्षित करती बोटी ||
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इस तरह आप कई छंद लिख सकते है , दोहा छंद में एक ही मात्रा घटने बढ़ने पर छंद का नाम बदल जाता है , मेरा मानना कि सभी मात्रिक छंदो में दोहा छंद सभी छंदो का जनक व चौपाई सभी छंदो की जननी है
पटल पर पोस्ट की निर्धारित सीमा है , अन्यथा कई छंदो का उल्लेख करता , जो दोहा चौपाई में मात्रा घटाने बढ़ाने पर बनते है , अत:
(कुछ मनोविनोद के साथ पोस्ट का समापन है )
यदि आज यह महाकवि होते तब यह लिख सकते थे शायद
(मनोविनोद ) उन्हीं के दोहों में रोटी
कबीर दास जी
चलती चक्की देखकर , कबिरा भी हरषाय |
कविरन रोटी सेंककर , मुझको शीघ्र बुलाय ||
रहीम जी
रहिमन रोटी दीजिए , रोटी बिन सब सून |
पानी भी मीठा मिले , समझो तभी सुकून ||
बिहारी कवि
रोटी के सब दोहरे , रोटी की है पीर. |
रोटी खाकर ही झरें , दोहे मुख के तीर ||
कुम्भनदास जी
संतो को मत सीकरी , पड़े न कोई काम |
रोटी हो गरमागरम , कुम्भक का विश्राम ||
महाकवि केशव जी
केशव बूड़ा जानकर , बाबा मुझें बनाय ।
चंद्रवदन मृगलोचनी , रोटी एक थमाय ||
हुल्लण मुरादावादी जी
पहले रोटी खाइए , पीछे लिखना छंद |
बैगन का भुरता तले , समझो परमानंद ||
चकाचक रोटी खायें |
हमे भी वहाँ बुलायें ||
सुभाष सिंघई जतारा