चौपाइयां
चौपाइयां
जय रघुवीर तुम्हारी शरणा। करउँ दण्डवत तुम्हारी चरना।।
जो मन मैल बसी रघुराई। काटहुं नागपास सम आई।।
हृदय मोह मद भरा विशेषा। काटहु दोष शीघ्र अवधेशा।।
भव भंजक तारक जग नाथा। चरण शरण रख करहुं सनाथा।।
भवन भूमि सुत कारक मोहा। जब लगि नहीं राम से छोहा।।
अनन्तकाल जग बहुत घुमाया, अब निजधाम देहु रघुराया।।
राम कृपा जो मिलहिं तिहारी। भवसागर हो सुगम उतारी।।
नाश होय सब अवगुण भारी। सन्त कृपा से मिलहिं खरारी।।
जड़ जङ्गम के पालक रामा। तुम सम नहीं देव सुखधामा।।
दिव्य रूप पावन सुर नाना। तुम्हरे सम नहीं शीलनिधाना।।
नश्वर रूप जगत परिवारा। छूटिहै देह विकल संसारा।।
अजर अमर होत नहीं केहू। समय आय देह तजि देहू।।
कण कण व्यापक ब्रह्म विचारा। उर धरि राम नाम उच्चारा।।
जहाँ भजन की बहती धारा। राजहिं राम सहित परिवारा।।
महादेव के देव खरारी। राम भजै निश दिन त्रिपुरारी।।
करत परस्पर मंगलाचरणा। देवहिं पूजित दारुणहरणा।।
रूढ़ मूढ़ जन समझत नाहीं। हरि बैरी हर भावत नाहीं।।
श्रीपति भजत इष्ट शिवनाथा।।शिवजी भजै राम रघुनाथा।।
पत्र पुष्प मलयज करि साजा। होय प्रसन्न शीघ्र नटराजा।।
श्रवण चढ़ावै सुरसरि धारा।। कोटिक जनम दोष शिव जारा।