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20 Jul 2021 · 5 min read

चौपई /जयकारी छंद

#चौपई/जयकारी/जयकरी छंद‌

चार चरण,प्रत्येक चरण में 15 मात्राएँ,
विशेष ध्यान ——-प्रत्येक चरण में आठ – सात पर यति
अंत में गुरु लघु 21 (ताल). दो-दो चरण समतुकांत।

आठ -सात यति समझाने के लिए प्रत्येक चरण में अल्प विराम लगा रहा हूँ , बैसे लगाना जरुरी नहीं है

चौपई छंद‌ (12 जुलाई)

कैसे बढ़ती , उनकी शान | खुद जो गाते , अपना गान ||
समझें दूजों , को नादान | पर चाहें खुद का सम्मान ||

सबसे कहते हवा प्रचंड | पर यह होता , वेग घमंड ||
रखते अपने , मन में रार | खाते रहते , खुद ही खार ||

बनता मानव, खुद ही भूप | सागर छोड़े , खोजे कूप ||
नहीं आइना, देखे रूप | अंधा बनता, पाकर धूप ||

बढ़ता कटता , है नाखून | सच्चा होता‌ , है कानून ||
करते लागू‌‌ , जो फानून | मर्यादा का , होता खून ||

(फानून =मनमर्जी कानून ){देशज शब्द है )

चौपइ (जयकरी छंद )

मिले नाम के हैं उपहास |
अन्वेषण में लगा सुभास ||
हैं तस्वीरें बड़ी विचित्र |
नहीं नाम से मिलें चरित्र ||

नहीं मंथरा मिलता नाम |
पर दिखते हैं उसके काम ||
गिनती में हैं लाख करोड़ |
मिले न जिनके कोई तोड़ ||

नहीं कैकयी नारी नाम |
पर मिलते हैं उसके काम ||
तजे आज भी दशरथ प्राण |
मिलें देखने कई प्रमाण ||

घर-घर में पनपें षड्यंत्र |
फूँक मुहल्ला जाता मंत्र ||
सीता बैठी करे विचार –
समझ परे हैं सब व्यवहार |

नहीं विभीषण मिलता नाम |
अनुज करें पर भेदी काम ||
शूर्पणखा के मिलते काम |
नाक कटा जो लोटे शाम ||

देखे मामा हैं मारीच |
मचा गये जो छल से कीच ||
नहीं नाम के मिलते मेल |
पर दिख जाते छल के खेल ||

सुभाष ‌सिंघई जतारा टीकमगढ़
=========================

#चौपई/जयकारी/जयकरी छंद. #मुक्तक
यह छंद के चार चरण का मुत्तक है
दो‌ युग्म जोड़कर भी मुक्तक सृजन हो सकता है ,जिसका उदाहरण आगे लिखा है

बढ़ता कटता , है नाखून |
सच्चा होता‌ , है कानून |
करते लागू‌‌ , जो भी रार –
मर्यादा का , होता खून |

कैसे बढ़ती उनकी‌ शान |
खुद जो गाते , अपना गान |
उल्टी – सीधी , चलते‌ चाल ~
समझें दूजों , को नादान |

सबसे कहते हवा प्रचंड |
पर यह होता , वेग घमंड |
रखे दुश्मनी , मन में ठान ~
खाता रहता , खुद ही दंड |

बनता मानव, खुद ही भूप |
सागर छोड़े , खोजे कूप |
नहीं करे वह , रस का पान ~
अंधा बनता, पाकर धूप |

लिखता मुक्तक , यहाँ सुभाष |
चौपई छंद , रखे प्रकाश |
पर सच मानो , वह अंजान ~
कदम रखे वह , कुछ है खास |
======================
दो‌ युग्म जोड़कर भी मुक्तक सृजन हो सकता है

कैसे बढ़ती उनकी‌ शान , खुद जो गाते , अपना गान |
समझें दूजों , को नादान , पर चाहें खुद , का सम्मान |
सबसे कहते हवा प्रचंड , पर यह होता , वेग. घमंड ~
टूटे पत्थर , सा हो खंड , रखे दुश्मनी , मन में ठान |

=================================
#चौपई/जयकारी/जयकरी छंद. #गीतिका( 14 जुलाई )

इस तरह भी चौपई गीतिका लिखी जा सकती है , पर आठ सात -आठ सात पर 21 से यति करके तीस मात्रा की

कैसे बढ़ती उनकी‌ शान , खुद जो गाते , अपना गान |
समझें दूजों , को नादान , पर चाहें खुद , का सम्मान ||

सबसे कहते हवा प्रचंड , पर यह होता , वेग घमंड ,
टूटे पत्थर , सा हो खंड , रखे दुश्मनी , मन में ठान |

बनता मानव, खुद ही भूप , सागर छोड़े , खोजे कूप ,
अंधा बनता, पाकर धूप , नहीं करे वह , रस का पान |

बढ़ता कटता , है नाखून , सच्चा होता‌ , है कानून ,
करते लागू‌‌ , जो फानून , मर्यादा का , है नुकसान ||

लिखे गीतिका , यहाँ सुभाष , चौपई छंद , का आभाष ,
कदम उठाता , कुछ है खास , पर सच मानो , वह अंजान |

या

इस तरह भी चौपई गीतिका लिखी जा सकती है , पर आठ सात -आठ सात पर 21 से यति करके तीस मात्रा की

कैसे उनका , माने भार , खुद जो गाते , अपना गान |
समझें दूजों , को बेकाम , पर चाहें खुद , का सम्मान ||

सबसे कहते हवा सुजान , पर है करते , सदा घमंड ,
खाता रहता , खुद ही खार , रखे दुश्मनी , मन में ठान |

देखा मानव, का है ज्ञान , सागर छोड़े , खोजे कूप ,
अंधा बनता, पाकर साथ , नहीं करे वह , रस का पान |

बढ़ती कटती , देखी डाल , सच्चा होता‌ , यहाँ उसूल ,
करते लागू‌‌ , अपना जोर , मर्यादा का , है नुकसान ||

लिखे गीतिका , यहाँ सुभाष , चौपई छंद , रखे प्रकाश ,
करता साहस , सबके बीच , पर सच मानो ,है अंजान |
========================

चौपई छंद‌ गीत (आठ- सात की क्रमश: यति रखते हुए )15 जुलाई

कैसे बढ़ती , उनकी शान , खुद जो गाते , अपना गान | मुखड़ा‌
समझें दूजों , को नादान , पर चाहें खुद का सम्मान || टेक

सबसे कहते हवा प्रचंड , पर यह होता , वेग घमंड |अंतरा
रखता अपने , मन में रार , खाता रहता , खुद ही खार ||
करता सबसे‌, जमकर बैर‌, और मचाता‌ , है तूफान | पूरक
समझें दूजों , ~~~~~~~~~~~~~`~~~~~~~~|| टेक

बनता मानव, खुद ही भूप ,सागर छोड़े , खोजे कूप |अंतरा
नहीं आइना, देखे रूप , अंधा बनता, पाकर धूप ||
पागल बनता , जग में घूम , करे सभी से , रारा ठान | पूरक
समझें दूजों ~~~`~~~~~~~~~~~~~~~~~~~||टेक

बढ़ता कटता , है नाखून , सच्चा होता‌ , है कानून |अंतरा
करते लागू‌‌ , जो फानून , मर्यादा का , होता खून ||
अब कवि सुभाष , करे आभाष ,उन्हें प्रेम का , कैसा दान |पूरक
समझें दूजों ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~||टेक

`~`~~“

चौपइ छंद ( जयकरी छंद) गीत
तीन चौकल + गाल या 8- 7

अजब गजब लगते दरबार , कागा करते हैं उपचार |
जहर हवा में अपरम्पार , साँस खींचना हैं दुश्वार ||

आज समय का लगता फेर, हर कारज में होती देर |
देखा हमने कच्चा बेर , पकवानों में बनता शेर ||
सच्ची कहता झूठ निहार , बगुला पहने कंठीहार |
जहर हवा में अपरम्पार , साँस खींचना है दुश्वार ||

पैदा है जो अब हालात , कौन सुनेगा‌ सच्ची बात |
सत्य यहाँ अब खाता मात , मिलती रहती उसको घात ||
तम का घेरा बोता खार , नागफनी फैली हर द्वार‌ |
जहर हवा में अपरम्पार , साँस खींचना है दुश्वार ||

जगह- जगह पर दिखती झोल , मिले पोल में हमको पोल |
खट्टा खाते मीठे बोल , झूठ यहाँ पर है अनमोल ||
छिपी छिपकली है दीवार , जहाँ राम का चित्र शुमार |
जहर हवा में अपरम्पार , साँस खींचना है दुश्वार |

सुभाष सिंघई

~~~
यह छंद बाल कविता में उपयोगी है

#विधा जयकरी छंद आधारित बाल कविता

जंगल का राजा है शेर |
सब झुकने को करें न देर ||
चमचा उसका बना सियार |
करता रहता जय जयकार ||

किया शेर ने एक शिकार |
आकर बोला तभी सियार ||
मत खाना इसको सरदार |
यह था टीवी का बीमार ||

छोड़‌ शेर ने वहाँ शिकार |
चला गया पर्वत के पार ||
तब सियार का माया जाल |
लगा मुफ्त का खाने माल ||

पर शिकार था सच बीमार |
अकल ठिकाने लगी सियार ||
आए डाक्टर बंदरराज |
भूखा रखकर करें इलाज |

सुभाष सिंघई

~~~~~~`

बंदर काकू हैं बाजार |
फल को माँगे वहाँ उधार ||
कहते फिर दे दूगाँ दाम |
अभी दीजिए हमको आम ||

फल वाला भी था हुश्यार |
कहता नियम बना इस बार ||
आज नगद- कल मिले उधार |
बात समझना तुम सरदार ||

समझ गया सब बंदर बात |
दिखा रहा यह अपनी जात ||
कभी न आए कल संसार |
सदा आज ही है उपहार ||

आम उठाकर चढ़ा मकान |
बोला बंदर हे श्रीमान ||
आज तुम्हारे लेता आम |
कल मैं दूगाँ पूरे दाम ||

चुके उधारी उठें सवाल |
बंदर कहता देगें काल ||
फलवाला जब बोले आज |
बंदर दे कल की आवाज ||

सुभाष सिंघई

जयकरी छंद आधारित बाल कविता लिखकर मैनें अपने पौत्र को याद कराई थी , वह इसे सबको सुनाता है

मैं घर का हूँ राजकुमार |
सब करते हैं मुझसे प्यार ||
पापा लेते है पुचकार |
मम्मी करती सदा दुलार ||

मेरी दीदी करे दुलार |
कहती मुझसे तू उपहार ||
राजा भैया कहती बोल |
मैं लगता उसको अनमोल ||

मेरे दादा सुनो सुभास |
देते मुझको ज्ञान प्रकाश ||
विजया दादी रहे निहाल |
रखती मेरा हरदम ख्याल ||

मामा मामी मेरे खास |
रहते दिल्ली जहाँ उजास ||
नाम रखा है सुनो श्रयान |
पर मामू कहते है शान ||

मेरी है दो बुआ महान |
खजुराहो सागर शुभ स्थान ||
टीकमगढ़ नानी का वास |
आशीषों का दें आभाष ||

अब मैं जाता हूँ स्कूल |
मानू मैडम के सब रूल ||
मैं कहता हूँ उनको मेम |
पर वह लेती‌ मेरा नेम || 🤗

सुभाष सिंघई

========================
समस्त उदाहरण स्वरचित व मौलिक
-©सुभाष सिंघई जतारा टीकमगढ़ म० प्र०
एम•ए• हिंदी साहित्य ,दर्शन शास्त्र

Language: Hindi
Tag: गीत
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