चौपई /जयकारी छंद
#चौपई/जयकारी/जयकरी छंद
चार चरण,प्रत्येक चरण में 15 मात्राएँ,
विशेष ध्यान ——-प्रत्येक चरण में आठ – सात पर यति
अंत में गुरु लघु 21 (ताल). दो-दो चरण समतुकांत।
आठ -सात यति समझाने के लिए प्रत्येक चरण में अल्प विराम लगा रहा हूँ , बैसे लगाना जरुरी नहीं है
चौपई छंद (12 जुलाई)
कैसे बढ़ती , उनकी शान | खुद जो गाते , अपना गान ||
समझें दूजों , को नादान | पर चाहें खुद का सम्मान ||
सबसे कहते हवा प्रचंड | पर यह होता , वेग घमंड ||
रखते अपने , मन में रार | खाते रहते , खुद ही खार ||
बनता मानव, खुद ही भूप | सागर छोड़े , खोजे कूप ||
नहीं आइना, देखे रूप | अंधा बनता, पाकर धूप ||
बढ़ता कटता , है नाखून | सच्चा होता , है कानून ||
करते लागू , जो फानून | मर्यादा का , होता खून ||
(फानून =मनमर्जी कानून ){देशज शब्द है )
चौपइ (जयकरी छंद )
मिले नाम के हैं उपहास |
अन्वेषण में लगा सुभास ||
हैं तस्वीरें बड़ी विचित्र |
नहीं नाम से मिलें चरित्र ||
नहीं मंथरा मिलता नाम |
पर दिखते हैं उसके काम ||
गिनती में हैं लाख करोड़ |
मिले न जिनके कोई तोड़ ||
नहीं कैकयी नारी नाम |
पर मिलते हैं उसके काम ||
तजे आज भी दशरथ प्राण |
मिलें देखने कई प्रमाण ||
घर-घर में पनपें षड्यंत्र |
फूँक मुहल्ला जाता मंत्र ||
सीता बैठी करे विचार –
समझ परे हैं सब व्यवहार |
नहीं विभीषण मिलता नाम |
अनुज करें पर भेदी काम ||
शूर्पणखा के मिलते काम |
नाक कटा जो लोटे शाम ||
देखे मामा हैं मारीच |
मचा गये जो छल से कीच ||
नहीं नाम के मिलते मेल |
पर दिख जाते छल के खेल ||
सुभाष सिंघई जतारा टीकमगढ़
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#चौपई/जयकारी/जयकरी छंद. #मुक्तक
यह छंद के चार चरण का मुत्तक है
दो युग्म जोड़कर भी मुक्तक सृजन हो सकता है ,जिसका उदाहरण आगे लिखा है
बढ़ता कटता , है नाखून |
सच्चा होता , है कानून |
करते लागू , जो भी रार –
मर्यादा का , होता खून |
कैसे बढ़ती उनकी शान |
खुद जो गाते , अपना गान |
उल्टी – सीधी , चलते चाल ~
समझें दूजों , को नादान |
सबसे कहते हवा प्रचंड |
पर यह होता , वेग घमंड |
रखे दुश्मनी , मन में ठान ~
खाता रहता , खुद ही दंड |
बनता मानव, खुद ही भूप |
सागर छोड़े , खोजे कूप |
नहीं करे वह , रस का पान ~
अंधा बनता, पाकर धूप |
लिखता मुक्तक , यहाँ सुभाष |
चौपई छंद , रखे प्रकाश |
पर सच मानो , वह अंजान ~
कदम रखे वह , कुछ है खास |
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दो युग्म जोड़कर भी मुक्तक सृजन हो सकता है
कैसे बढ़ती उनकी शान , खुद जो गाते , अपना गान |
समझें दूजों , को नादान , पर चाहें खुद , का सम्मान |
सबसे कहते हवा प्रचंड , पर यह होता , वेग. घमंड ~
टूटे पत्थर , सा हो खंड , रखे दुश्मनी , मन में ठान |
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#चौपई/जयकारी/जयकरी छंद. #गीतिका( 14 जुलाई )
इस तरह भी चौपई गीतिका लिखी जा सकती है , पर आठ सात -आठ सात पर 21 से यति करके तीस मात्रा की
कैसे बढ़ती उनकी शान , खुद जो गाते , अपना गान |
समझें दूजों , को नादान , पर चाहें खुद , का सम्मान ||
सबसे कहते हवा प्रचंड , पर यह होता , वेग घमंड ,
टूटे पत्थर , सा हो खंड , रखे दुश्मनी , मन में ठान |
बनता मानव, खुद ही भूप , सागर छोड़े , खोजे कूप ,
अंधा बनता, पाकर धूप , नहीं करे वह , रस का पान |
बढ़ता कटता , है नाखून , सच्चा होता , है कानून ,
करते लागू , जो फानून , मर्यादा का , है नुकसान ||
लिखे गीतिका , यहाँ सुभाष , चौपई छंद , का आभाष ,
कदम उठाता , कुछ है खास , पर सच मानो , वह अंजान |
या
इस तरह भी चौपई गीतिका लिखी जा सकती है , पर आठ सात -आठ सात पर 21 से यति करके तीस मात्रा की
कैसे उनका , माने भार , खुद जो गाते , अपना गान |
समझें दूजों , को बेकाम , पर चाहें खुद , का सम्मान ||
सबसे कहते हवा सुजान , पर है करते , सदा घमंड ,
खाता रहता , खुद ही खार , रखे दुश्मनी , मन में ठान |
देखा मानव, का है ज्ञान , सागर छोड़े , खोजे कूप ,
अंधा बनता, पाकर साथ , नहीं करे वह , रस का पान |
बढ़ती कटती , देखी डाल , सच्चा होता , यहाँ उसूल ,
करते लागू , अपना जोर , मर्यादा का , है नुकसान ||
लिखे गीतिका , यहाँ सुभाष , चौपई छंद , रखे प्रकाश ,
करता साहस , सबके बीच , पर सच मानो ,है अंजान |
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चौपई छंद गीत (आठ- सात की क्रमश: यति रखते हुए )15 जुलाई
कैसे बढ़ती , उनकी शान , खुद जो गाते , अपना गान | मुखड़ा
समझें दूजों , को नादान , पर चाहें खुद का सम्मान || टेक
सबसे कहते हवा प्रचंड , पर यह होता , वेग घमंड |अंतरा
रखता अपने , मन में रार , खाता रहता , खुद ही खार ||
करता सबसे, जमकर बैर, और मचाता , है तूफान | पूरक
समझें दूजों , ~~~~~~~~~~~~~`~~~~~~~~|| टेक
बनता मानव, खुद ही भूप ,सागर छोड़े , खोजे कूप |अंतरा
नहीं आइना, देखे रूप , अंधा बनता, पाकर धूप ||
पागल बनता , जग में घूम , करे सभी से , रारा ठान | पूरक
समझें दूजों ~~~`~~~~~~~~~~~~~~~~~~~||टेक
बढ़ता कटता , है नाखून , सच्चा होता , है कानून |अंतरा
करते लागू , जो फानून , मर्यादा का , होता खून ||
अब कवि सुभाष , करे आभाष ,उन्हें प्रेम का , कैसा दान |पूरक
समझें दूजों ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~||टेक
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चौपइ छंद ( जयकरी छंद) गीत
तीन चौकल + गाल या 8- 7
अजब गजब लगते दरबार , कागा करते हैं उपचार |
जहर हवा में अपरम्पार , साँस खींचना हैं दुश्वार ||
आज समय का लगता फेर, हर कारज में होती देर |
देखा हमने कच्चा बेर , पकवानों में बनता शेर ||
सच्ची कहता झूठ निहार , बगुला पहने कंठीहार |
जहर हवा में अपरम्पार , साँस खींचना है दुश्वार ||
पैदा है जो अब हालात , कौन सुनेगा सच्ची बात |
सत्य यहाँ अब खाता मात , मिलती रहती उसको घात ||
तम का घेरा बोता खार , नागफनी फैली हर द्वार |
जहर हवा में अपरम्पार , साँस खींचना है दुश्वार ||
जगह- जगह पर दिखती झोल , मिले पोल में हमको पोल |
खट्टा खाते मीठे बोल , झूठ यहाँ पर है अनमोल ||
छिपी छिपकली है दीवार , जहाँ राम का चित्र शुमार |
जहर हवा में अपरम्पार , साँस खींचना है दुश्वार |
सुभाष सिंघई
~~~
यह छंद बाल कविता में उपयोगी है
#विधा जयकरी छंद आधारित बाल कविता
जंगल का राजा है शेर |
सब झुकने को करें न देर ||
चमचा उसका बना सियार |
करता रहता जय जयकार ||
किया शेर ने एक शिकार |
आकर बोला तभी सियार ||
मत खाना इसको सरदार |
यह था टीवी का बीमार ||
छोड़ शेर ने वहाँ शिकार |
चला गया पर्वत के पार ||
तब सियार का माया जाल |
लगा मुफ्त का खाने माल ||
पर शिकार था सच बीमार |
अकल ठिकाने लगी सियार ||
आए डाक्टर बंदरराज |
भूखा रखकर करें इलाज |
सुभाष सिंघई
~~~~~~`
बंदर काकू हैं बाजार |
फल को माँगे वहाँ उधार ||
कहते फिर दे दूगाँ दाम |
अभी दीजिए हमको आम ||
फल वाला भी था हुश्यार |
कहता नियम बना इस बार ||
आज नगद- कल मिले उधार |
बात समझना तुम सरदार ||
समझ गया सब बंदर बात |
दिखा रहा यह अपनी जात ||
कभी न आए कल संसार |
सदा आज ही है उपहार ||
आम उठाकर चढ़ा मकान |
बोला बंदर हे श्रीमान ||
आज तुम्हारे लेता आम |
कल मैं दूगाँ पूरे दाम ||
चुके उधारी उठें सवाल |
बंदर कहता देगें काल ||
फलवाला जब बोले आज |
बंदर दे कल की आवाज ||
सुभाष सिंघई
जयकरी छंद आधारित बाल कविता लिखकर मैनें अपने पौत्र को याद कराई थी , वह इसे सबको सुनाता है
मैं घर का हूँ राजकुमार |
सब करते हैं मुझसे प्यार ||
पापा लेते है पुचकार |
मम्मी करती सदा दुलार ||
मेरी दीदी करे दुलार |
कहती मुझसे तू उपहार ||
राजा भैया कहती बोल |
मैं लगता उसको अनमोल ||
मेरे दादा सुनो सुभास |
देते मुझको ज्ञान प्रकाश ||
विजया दादी रहे निहाल |
रखती मेरा हरदम ख्याल ||
मामा मामी मेरे खास |
रहते दिल्ली जहाँ उजास ||
नाम रखा है सुनो श्रयान |
पर मामू कहते है शान ||
मेरी है दो बुआ महान |
खजुराहो सागर शुभ स्थान ||
टीकमगढ़ नानी का वास |
आशीषों का दें आभाष ||
अब मैं जाता हूँ स्कूल |
मानू मैडम के सब रूल ||
मैं कहता हूँ उनको मेम |
पर वह लेती मेरा नेम || 🤗
सुभाष सिंघई
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समस्त उदाहरण स्वरचित व मौलिक
-©सुभाष सिंघई जतारा टीकमगढ़ म० प्र०
एम•ए• हिंदी साहित्य ,दर्शन शास्त्र