चौकीदार (लघु कथा)
चौकीदार (लघु कथा)
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कालोनी में नया चौकीदार रखा जाना था। इस कार्य के लिए बाकायदा अखबार में विज्ञापन दिया गया था। लिहाजा करीब 5 लोगों ने चौकीदार के कार्य पर रखे जाने के लिए आवेदन पत्र दिया था। इंटरव्यू हो रहा था। कॉलोनी के सात लोगों की कमेटी बनी हुई थी, जो बारीकी से एक- एक करके चौकीदार की नौकरी के लिए आवेदन देने वाले व्यक्तियों को बुलाकर उनका इंटरव्यू ले रही थी।
सभी चौकीदार बनने के इच्छुक व्यक्ति अपनी कर्तव्य निष्ठा और कार्य में मुस्तैदी के बारे में बात कर रहे थे लेकिन जो आखिरी व्यक्ति इंटरव्यू के लिए आया, उसने जम्हाई लेकर बड़े ही सुस्ताने वाले लहजे में कहा ” भाई साहब ! आप मुझे चौकीदार बना दीजिए । मैं रात को आऊंगा और आते के साथ ही सो जाऊंगा। फिर सुबह जाकर उठूंगा । रात भर कोई चौकीदारी नहीं करूंगा। जो चाहे आए , चला जाए । जितना चाहे लूटे, चुराए। मुझे कोई मतलब नहीं।”
सुनकर एक बार तो सब लोग जो इंटरव्यू ले रहे थे, चौंक पड़े । एक सज्जन तो बोले “जब तुम्हें चौकीदारी करना ही नहीं है तो चौकीदारी के इंटरव्यू के लिए क्यों आए ?”
आवेदक सुनने के बाद भी डटा रहा और बाहर नहीं गया। उसे शायद विश्वास था कि चौकीदारी के लिए उसका चयन हो जाएगा। और बड़े आश्चर्य की बात है कि इंटरव्यू- कमेटी के एक व्यक्ति ने उसको हाथ का इशारा देकर इंटरव्यू- रूम में बैठे रहने को कहा।
फिर वे लोग आपस में विचार करने लगे। एक व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति से कहा “अगर हम इसे चौकीदारी के लिए रख लें, तो बहुत अच्छा रहेगा ”
दूसरे ने सुनकर कुछ सोचा और कहा “हां! आप ठीक कहते हो। इससे अच्छा चौकीदार हमें कोई नहीं मिलेगा।”
अब बाकी 5 लोग थे, जिनमें से एक तो बहुत मुखर था और विरोध कर रहा था ।वह आलसी व्यक्ति को चौकीदार बनाने के बिल्कुल खिलाफ था। एक और व्यक्ति भी उसके साथ था ।
मगर धीरे धीरे आपस में गोलबंदी होने लगी और आश्चर्यजनक रूप से अंत में इंटरव्यू- कमेटी ने बहुमत से यह तय किया कि यह आदमी जो सबसे आखिर में आया है और जिस का कहना है कि वह चोर – लुटेरे किसी को नहीं रोकेगा और ड्यूटी पर सिर्फ सोता रहेगा, हम उसे कॉलोनी का चौकीदार नियुक्त करते हैं।
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लेखक: रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा,
रामपुर, (उत्तर प्रदेश), मोबाइल 99976 15451