चोरी से जब नान वेज , ,
चोरी से जब नानवेज , खाने को मिल जाय।
लाख बहाना कर भले , झूठ जाय पकड़ाय ।
झूठ जाय पकड़ाय , व्यर्थ चोरी की बोटी ,
फूटे मित्र नसीब मिले , तब सब्जी रोटी ।
कह प्रवीण कविराय , न खाने दे अब गोरी ,
मंहगी पड़ती यार , बुरी पत्नी से चोरी ।