चोट दिल पर ही खाई है
चोट दिल पर ही खाई है
********************
प्रेम में ही गहराई है,
तंग करती तन्हाई है।
साथ देती आई सदा,
खौफ़ में तो परछाई है।
जान कर पथ आते नहीं,
सरहदें भी हटवाई है।
गीत – गजलें गाते नहीं,
हो गई उनसे रुसवाई है।
बात कोई सुनता नहीं,
आज फिर से सुनवाई है।
साँस आती-जाती नहीं,
शीत चलती पुरवाई है।
जान मुश्किल में है बड़ी
राह में मिलते हरजाई हैँ।
पास मनसीरत था खड़ा,
चोट दिल पर ही खाई है।
*********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)