चैत का उत्सव (दो मुक्तक)
चैत का उत्सव (दो मुक्तक)
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(1) चैती-चैत का उत्सव मनाता है
करिश्मा है ये कुदरत का हमें मौसम बताता है
न जाड़ा है न गर्मी है, पवन अलमस्त गाता है
जो सूखा ठुंठ था उस पर नये पत्ते निकल आए
बगीचा-बाग चैती-चैत का उत्सव मनाता है
(2)अब साँसें महकती हैं
बदन में आ रही फुर्ती है अब साँसें महकती हैं
मधुर संगीत कोयल गा रही चिड़ियाँ चहकती हैं
नए पत्तों से पेड़ों पर नया यौवन निकल आया
हवाएँ गंध की मस्ती से खुद अपनी बहकती हैं
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा,
रामपुर उत्तर प्रदेश मोबाइल 9997 615 451