चैतन्य की पुकार
दूसरों की जीत पर-वाह क्या करें
अपनों की हार पर-आह क्या करें
सरकारें तो आती-जाती रहती हैं
हम सरकारों की-परवाह क्या करें…
(१)
जब कोई चीज़-इस दुनिया में
हमेशा के लिए-नहीं रहती है
तो दौलत या-ताक़त के लिए
झूठ-मूठ में-हम गुनाह क्या करें…
(२)
हम वाक़िफ हैं-एक-दूजे से
हमारे लिए तो-काफी है यही
अब समझने लगें-सारे लोग हमें
आख़िर ऐसी-हम चाह क्या करें…
(३)
देखने के लिए-कायनात में
कितने दिलकश-नाजारे हैं
कुदरत से अपने-ध्यान को हटाकर
हम सियासत पर-निगाह क्या करें…
(४)
वह मुहब्बत हो-चाहे इबादत
तनहाई में ही-अच्छी लगती है
जो बात हम दोनों के बीच की है
तमाशे के लिए-सरे-राह क्या करें…
#Geetkar
Shekhar Chandra Mitra
#जनवादीकविता #अवामीशायरी
#इंकलाबीशायरी #सियासीशायरी