चूल्हे से
चेहरे खिले
खुशी मँड़राई
चूल्हे से।
आटा देख
घरैतिन फिर से युवा हुई
हफ्ते बाद कबूल
सुबह की दुआ हुई
नाकों से
रोटी की खुशबू टकराते
चौके तक
बुढ़िया चल आई कूल्हे से।
धुँआ उठा
छप्पर के ऊपर जा छाया
काँव-काँव करता बायस
फिर मँड़राया
घर आए वर देखुआ
भेली-दही पिए
साली-सलहज फिर
अठलाईं दूल्हे से।
रोहिणी नन्दन मिश्र
“अँखुआ” से