*चुहियादानी (बाल कहानी)*
चुहियादानी (बाल कहानी)
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चुलबुल चुहिया उछलती हुई अपनी सहेलियों के बीच आई तो सब समझ गई कि आज जरूर इस चुलबुल ने कोई कारनामा किया होगा ।
“बताओ चुलबुल ! आज कौन सी बहादुरी का काम करके आई हो ?”
चुलबुल चुहिया मानो अपने संस्मरण सुनाने के लिए बेचैन थी। तुरंत बोल पड़ी “आज तो बड़ी होशियारी से जान बचाकर भागी हूॅं, वरना सिर कट चुका होता ।”
” अरे ऐसी क्या बात हो गई ? हमें भी तो बताओ !”-एक सहेली ने पूछा।
चुलबुल चुहिया ने कुतरे हुए कागजों के ढेर पर अपनी सहेलियों को आराम से बिठाया और कहा “सुनो बहनों ! किस्सा यह है कि आज जब मैं एक मकान में इधर से उधर घूम रही थी तो मैंने एक अजीब-सी चीज दरवाजे के पास रखी हुई देखी। वह छोटी सी चीज थी लेकिन उसमें से बड़ी प्यारी खुशबू आ रही थी । उस से जुड़ी हुई रोटी देखकर और उसकी सुगंध में डूब कर एक बार तो मेरा मन ललचा गया और मैंने चाहा कि दौड़ कर उस रोटी के टुकड़े को कुतर कर खा जाऊॅं। लेकिन तभी मुझे अपनी नानी की नसीहत याद आई । उन्होंने बताया था कि यह शायद चूहेदानी या चुहियादानी कहलाती है और इसका इस्तेमाल मनुष्य लोग हम चूहे-चूहियों को पकड़ने के लिए करते हैं । बस, मैंने देखा कि यह चीज तो बिल्कुल चुहियादानी-जैसी ही लग रही थी ।”
“क्या सचमुच वह चुहियादानी थी ?”- सॉंस रोककर चुलबुल चुहिया की कहानी सुनने वाली उसकी सहेलियों ने एक साथ पूछा ।
“हॉं, सचमुच वह चूहेदानी ही लग रही थी । मैं उसके पास तक गई । खूब नजदीक से देखा और फिर मैंने यह भी देखा कि उस चुहियादानी में घी से चुपड़ा हुआ रोटी का टुकड़ा एक कॉंटे में फॅंसा कर रखा गया था । इसका मतलब जानती हो ?”-चुलबुल चुहिया ने अपनी सहेलियों से पूछा ।
सहेलियों ने जवाब दिया -“हम तो बैठे ही तुम्हारी कहानी सुनने के लिए हैं । बड़ी रोमांचक कहानी है । जरा इसका मतलब भी समझाओ ताकि हम भी जाल में न फॅंस जाऍं और अपने भाई-बहनों को भी इस बारे में सचेत कर दें ।”
चुलबुल चुहिया ने एक अच्छे वक्ता की तरह अब सबको समझाना शुरू किया -“देखो, यह चूहादानी हमें फॅंसाने के लिए बनाई जाती है ताकि हम रोटी के चुपड़े गए टुकड़े को पकड़ने के लिए चुहियादानी में घुसें और जैसे ही उस टुकड़े को मुॅंह से पकड़कर खींचें तो चुहियादानी का दरवाजा बंद हो जाए और हम गिरफ्तार कर लिए जाऍंगे । उसके बाद तो हम इन मनुष्यों की कृपा पर निर्भर करते हैं ।”
“अरे ! यह तो बहुत खतरनाक यंत्र जान पड़ता है। अच्छा हुआ तुम बच कर आ गईं वरना शायद फॅंस ही जातीं।”
चुलबुल ने यह सुनकर गहरी सॉंस ली और रुआॉंसी आवाज में कहा -“मैं तो बच गई, लेकिन मेरा छोटा भाई मोटू लालच में मारा गया । इससे पहले कि मैं उसे रोकती, वह चुपड़ी रोटी की सुगंध से मोहित होकर चूहेदानी में घुस गया और जैसे ही उसने रोटी को खींचा तो गिरफ्तार हो गया। उसके बाद मैं तो सरपट दौड़ कर घर से बाहर चली आई। फिर मुझे पता नहीं कि इन मनुष्यों ने मेरे भाई के साथ क्या किया ?”
सुनकर सहेलियों ने भी अपना चेहरा रुऑंसा कर लिया और कहने लगीं “अभी भी मनुष्य हम को अपना शत्रु समझते हैं । जबकि हम बड़े प्यार से उनके साथ हिल-मिलकर रहना चाहते हैं। उनको क्या फर्क पड़ता है, अगर चार रोटी खाईं और दो टुकड़े हमें खिला दिए । घर का एक कमरा हमारे लिए रिजर्व कर दें तो हम पूरे घर में क्यों घूमेंगे ? लेकिन मनुष्यों को कौन समझाए ?”
सहेलियों की बात सुनकर चुलबुल चुहिया हॅंसने लगी। बोली “मनुष्यों की भाषा और हमारी भाषा बिल्कुल अलग होती है। न हम उनकी भाषा समझ पाते हैं, न वह हमारी भाषा समझ पाऍंगे। बस वह तो हमारे लालच को पहचान गए हैं, और जानते हैं कि हम अच्छे भोजन की लालची होती हैं । इसलिए उनकी चुहियादानी वाली तरकीब खूब काम कर रही है।”
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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